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२१६. प्रस्तावना: "स्वदेशी धर्म" की

बम्बई

भीमसेनी एकादशी [२८ मई, १९२०]

इस निबन्धकी प्रस्तावना लिखना मेरे वशकी बात नहीं है, क्योंकि लेखक' मेरे मित्र हैं। निबन्धके विषयों में इतना ही कह सकता हूँ कि इसमें उल्लिखित विचार स्वदेशी धर्मको शोभान्वित करनेवाले हैं और मेरी इच्छा है कि उनके इन विचारोंका हिन्दुस्तान के लोग पूरा-पूरा उपयोग करें।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजरातीसे]

स्वदेशी धर्म


२१७. पागलपन

मैं कह चुका हूँ कि असहकार आदि उग्र शस्त्रका प्रयोग करते समय हमें धैर्यंसे काम लेना सीखना चाहिए। यदि हम उसका उपयोग करते हुए क्रोधसे काम लें तो बड़ा नुकसान हो जाये। सरकार गुस्से में आ जाये तो हम उसे भी सहन करें, यही उचित है। जब-जब राज्य-सत्ताके हाथों अन्याय होता है तब-तब लगभग वह यही चाहती है कि जनता उत्तेजित हो जाये और खून-खराबी हो। यदि जनता उस फंदे में फँस जाती है तो उसका ध्यान उपर्युक्त अन्यायसे हटकर अशान्ति मचानेकी ओर चला जाता है। फिर खून-खराबी करनेवालोंको दबानेके लिए राजा और प्रजा एक हो जाते हैं और मूल बात, अन्यायको भुला दिया जाता है। अथवा जिस समय जनता अन्यायके विरुद्ध आन्दो- लन करती है उस समय राज्याधिकारी उस आन्दोलनको दबानेका भारी प्रयत्न करते हैं और किये गये अन्यायको छिपाने में विवेक-बुद्धिका अतिक्रमण कर जाते हैं। परिणाम- स्वरूप अन्याय के विरुद्ध किये जानेवाले आन्दोलनको दबानेकी कोशिशमें वे पागल हो जाते हैं।

मुझे लगता है कि हमारी सरकार ऐसे पागलपनका शिकार हो गई है। पंडित मोतीलाल नेहरूको संयुक्त प्रान्त सब लोग जानते हैं। वहाँके गवर्नर उन्हें तीस सालसे पहचानते हैं। उनके एकमात्र पुत्र जवाहरलाल नेहरू बैरिस्टर हैं, और वे भी सुप्रसिद्ध हैं। वे अपने पिताकी, उनके धन्धे तथा सार्वजनिक जीवनमें पूरी-पूरी मदद करते हैं।

१. दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर (१८८५-); काकासाहबके नामसे प्रसिद्ध; १९१५ से गांधीजीके सहयोगी; यह पुस्तिका सत्याग्रह आश्रमके स्वामी आनन्द द्वारा १९२० में प्रकाशित की गई थी।

२. अब उत्तर प्रदेश।