पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२३. पंजाबकी चिट्ठी--११

[११ फरवरी, १९२० के पूर्व][१]

जलियाँवाला बाग

जलियाँवाला बाग अब राष्ट्रको सम्पत्ति हो गया है। पंडित मालवीयजीने कांग्रेस अधिवेशनमें[२] इस आशयकी बात कही थी। लेकिन बादमें उसमें भारी विघ्न उपस्थित हो गये थे। उस विषयमें लिखा-पढ़ी नहीं हुई थी और उसके कुछ भागीदारोंने अपने निश्चयको बदल दिया था। उन्होंने सोचा कि बागके थोड़े से भागको राष्ट्रको देकर बाकी भागमें व्यापार किया जाये। लोगोंने उन्हें बहुत समझाया कि श्मशान-भूमिके टुकड़े नहीं किये जाने चाहिए। बागका एक भी कोना ऐसा नहीं है जो निर्दोष व्यक्तियोंके रक्तसे सना हुआ न हो। इसलिए व्यापारिक दृष्टिसे उसका उपयोग करना उचित नहीं होगा। और फिर भारतके एक अनन्य सेवकने यह घोषित कर दिया है कि सारा बाग राष्ट्रको सम्पत्ति बन गया है, इसलिए भी बागके टुकड़े नहीं होने चाहिए। तथापि जिन भागीदारोंने अपने निर्णयको बदल दिया था, वे अपने उस निर्णयसे नहीं हटे। अन्तमें पंडितजी और स्वामी श्रद्धानन्दजीको[३] अमृतसर जाना पड़ा। अब इस सम्बन्धमें एक समझौता हो गया है और कच्ची लिखा-पढ़ी भी हो गई है।

पाँच लाख

उसकी कीमत पाँच लाखसे ऊपर आँकी गई है, और इस रकमको तीन महीनेके अन्दर भर देनेका करार किया गया है। यदि उस समयतक परी रकम न दी जा तो जनताके हाथसे जमीन निकल जानेका परा भय है।

अब दूसरा कदम यह है कि जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी इस रकमको इकट्ठा किया जाये। उत्तम तो यह होगा कि इस कार्यमें सब लोग अपनी सामर्थ्य के अनुसार पैसा दें, इससे राष्ट्रका गौरव बढ़ेगा और वह ऊँचा उठेगा। यह बाग एक असाधारण स्थल है, पवित्र स्थान है। इसे हम तीर्थस्थानके रूपमें प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। कांग्रेसके अधिवेशनके समय हजारों व्यक्ति इस बागको देखने गये, हजारों लोग तो इसी कामके लिए आये थे। हरद्वार हिन्दुओंका तीर्थ-स्थान है, लेकिन इसमें जैन, सिख, और अन्य लोग जो अपने आपको हिन्दू नहीं मानते, नहीं आते हैं। मुसलमान, ईसाई, पारसी और यहूदियोंके लिए तो वह तीर्थ-स्थान है ही नहीं। जलियाँवाला बाग

  1. पंजाबकी चिट्ठी-१२",१५-२-१९२० में गांधीजीकी जिस गुजरात यात्राका जिक्र किया गया है, यह चिट्ठी सम्भवत: उससे पूर्व लिखी गई थी।
  2. यह अधिवेशन अमृतसरमें हुआ था।
  3. महात्मा मुंशीराम (१८५६-१९२६); बादमें श्रद्धानन्दके नामसे प्रसिद्ध आर्यसमाजके राष्ट्रवादी नेता जिन्होंने दिल्ली और पंजाबके सार्वजनिक जीवन में प्रमुख भाग लिया था।