पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५३७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५०५
सावरकर-बन्धु

उनका खयाल है कि इन सुधारोंसे लोगोंके लिए इस तरह काम करना सम्भव हो गया है जिससे भारतको राजनीतिक दायित्व प्राप्त हो सके। दोनोंने स्पष्ट शब्दोंमें बता दिया है कि वे ब्रिटिश सम्बन्धोंसे मुक्त नहीं होना चाहते। इसके विपरीत, उन्हें लगता है कि भारतकी किस्मत ब्रिटेनके साथ रहकर ही सबसे अच्छी तरह गढ़ी जा सकती है। किसीने भी उनके खरेपन या ईमानदारीमें सन्देह नहीं किया है, और मेरा खयाल है कि उन्होंने जो विचार व्यक्त किये हैं, उन्हें ज्योंका-त्यों सही मान लेना चाहिए। और मेरे विचारसे जो बात इससे भी बड़ी है वह यह कि आज बेखटके कहा जा सकता है कि इस समय भारतमें हिंसावादी विचार-धाराके अनुगामियोंकी संख्या नगण्य है। अब इन दोनों भाइयोंकी स्वतन्त्रतापर आगे रोक लगाये रखनेका एकमात्र कारण 'सार्वजनिक सुरक्षाको खतरा' ही हो सकता है, क्योंकि महामहिमने वाइसरायको राज- नीतिक अपराधियोंके प्रति, सार्वजनिक सुरक्षाका खयाल रखते हुए जहाँतक ठीक लगे वहांतक, राजानुकम्पाका प्रयोग करनेका दायित्व सौंपा है। इसलिए मेरे विचारसे अगर इस बातका पूरा प्रमाण सामने न हो कि इन दोनों भाइयोंको छोड़ देना राज्यके लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है तो वाइसराय इन्हें छोड़नेके लिए बँधे हुए हैं। इसके अलावा ये दोनों पहले ही काफी समयतक सजा भोग चुके हैं, इनके शरीर भी काफी छीज गये हैं और इन्होंने अपने राजनीतिक विचार भी स्पष्ट कर दिये हैं। सार्वजनिक सुरक्षा सम्बन्धी शर्त पूरी हो जानेकी स्थितिमें इन दोनों भाइयोंको छोड़ देना वाइसरायके लिए, उनकी जो राजनीतिक हैसियत है उसे ध्यान में रखते हुए, उतना ही जरूरी है जितना कि न्यायाधीशोंके लिए, उनकी न्यायिक हैसियतके खयालसे, इन दोनों भाइयोंपर कानूनमें विहित न्यूनतम दण्ड देना जरूरी था। अगर उन्हें आगे कुछ समयके लिए भी कैदमें रखना है तो उसका औचित्य ठहराते हुए एक पूरा वक्तव्य जारी करना जनताके प्रति उनका कर्तव्य है।

यह मामला भाई परमानन्दके मामलेसे न अच्छा है और न बुरा, और पंजाब सरकारकी कृपासे वे काफी समयतक कारावास भोग लेने के बाद अब छोड़ दिये गये हैं। अगर हम इस आधारपर इस मामलेको सावरकर-बन्धुओंके मामलेसे अलग करके देखना चाहें कि भाई परमानन्दने अपनेको बिलकुल निर्दोष बताया तो यह भी ठीक नहीं होगा। जहाँतक सरकारका सम्बन्ध है, सभी समान रूपसे अपराधी थे, क्योंकि सभीको सजाएँ दी गई थीं। और राजानुकम्पाका लाभ केवल सन्दिग्ध मामलों- में ही नहीं देना है, बल्कि उन मामलोंमें भी देना है जिनमें अपराध पूरी तरह सिद्ध हो गया है। शर्तें केवल ये हैं कि अपराध राजनीतिक हो और राजानुकम्पाके प्रयोगका परिणाम, वाइसरायके विचारमें, ऐसा न हो जिससे सार्वजनिक सुरक्षा खतरेमें पड़ जाये। ये दोनों भाई राजनीतिक अपराधी हैं, इसमें तो कोई सन्देह हो ही नहीं सकता। और जहाँतक सर्वसाधारणको मालूम है, सार्वजनिक सुरक्षाको भी कोई खतरा नहीं है। वाइसरायकी कौंसिलमें ऐसे मामलोंके सम्बन्धमें प्रश्न पूछने- पर बताया गया कि य विचाराधीन हैं। लेकिन उनके भाईको बम्बई सरकारने इस आशयका उत्तर भेजा है कि उनके सम्बन्धमें आगे कोई स्मृतिपत्र वगैरह स्वीकार