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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

देशनिकालेकी सजा दी गई। अभी वे अण्डमान द्वीप-समूहमें अपनी सजा काट रहे हैं। इस प्रकार वे ग्यारह सालतक सजा भोग चुके हैं।

खण्ड १२१ वही प्रसिद्ध खण्ड है जिसका उपयोग पंजाबके मुकदमोंके सिलसिलेमें किया गया था और जिसका सम्बन्ध 'राजाके विरुद्ध लड़ाई छेड़ने' से है। इसके अन्तर्गत जो कमसे-कम सजा दी जा सकती है वह है जायदादकी जब्तीके साथ आजीवन देश-निकाला। १२१ (क) भी इसी तरहका खण्ड है। १२४ (क) का सम्बन्ध राजद्रोहसे है। खण्ड १५३ (क) का सम्बन्ध 'बोलकर, लिखकर या अन्य किसी प्रकारसे शब्दों द्वारा ' विभिन्न वर्गोंके बीच वैर-भाव उत्पन्न करनेसे है । इस प्रकार यह स्पष्ट है कि (बड़े) सावरकर महोदयपर लगाये गये सभी आरोप सार्वजनिक ढंगके थे। उन्होंने कोई हिंसात्मक कार्रवाई नहीं की थी। वे विवाहित थे, और उनके दो लड़- कियाँ थीं, जिनका देहान्त हो चुका है। उनकी पत्नीकी मृत्यु भी अभी अठारह मास पूर्व हुई है।

दूसरे भाईका ' जन्म सन् १८८४ में हुआ था। वे काफी समयतक लन्दनमें रहे, और वहाँ उनकी जो गतिविधियाँ रहीं, उन्हींके कारण उन्हें अधिकांश लोग जानते हैं। पुलिसकी निगरानीसे भाग निकलनेकी उनकी सनसनी फैला देनेवाली कोशिश और जहाजके झरोखेसे उनका फ्रांसीसी समुद्रमें कूद पड़ना. २ इन बातोंकी याद जनताके मनमें अब भी ताजा है। उनकी शिक्षा फर्ग्युसन कालेज में हुई, लन्दनमें उन्होंने अपना अध्ययन समाप्त किया और बैरिस्टर बन गये । सन् १८५७ के सिपाही विद्रोहपर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी, जो जब्त कर ली गई है । सन् १९१० में उनपर मुकदमा चलाया गया और २४ सितम्बर, १९१० को उन्हें वही सजा दी गई जो उनके भाईको दी गई थी। सन् १९११ में उनपर लोगोंको हत्याके लिए उकसानेका आरोप लगाया गया। लेकिन इनके विरुद्ध भी किसी प्रकारकी हिंसाका आरोप सिद्ध नहीं हो पाया। ये भी विवाहित हैं और १९०९में इनके एक लड़का भी हुआ। इनकी पत्नी अभी जीवित हैं।

इन दोनों भाइयोंने अपने राजनीतिक विचार स्पष्ट कर दिये हैं और दोनोंने कहा है कि उनके मनमें किसी प्रकारके क्रान्तिकारी इरादे नहीं हैं और अगर उन्हें मुक्त कर दिया गया तो वे सुधार-कानूनके अधीन काम करना पसन्द करेंगे, क्योंकि

१. विनायक दामोदर सावरकर (१८८४-१९६६); प्रमुख क्रान्तिकारी जो आगे चलकर अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के प्रमुख नेता हुए।

२. यहाँ उन्होंने भारतको स्वतन्त्रता के लिए एक आन्दोलन चलाया, जो एक समय में ऐसी अवस्था में पहुँच गया कि श्री सावरकर पेरिससे भारतको बन्दूकें आदि भेजने लग गये थे।

३. मार्सेल्ज बन्दरगाह के पास जुलाई १९१० में, जब उन्हें १८८१ के भगोड़े अपराधी अधिनियमके अन्तर्गत इंग्लैंडसे पकड़कर भारत लाया जा रहा था।

४. नासिकके कलक्टर श्री ए० एम० टी० जैक्सनकी हत्याके सिलसिले में उनपर यह आरोप लगाया गया था कि जिस पिस्तौलते जैक्सनको हत्या की गई वह सावरकर द्वारा लन्दनसे भेजी गई पिस्तौलोंमें से एक थी।

५. सन् १९१९ का भारत सरकार अधिनियम।