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२१३. सावरकर-बन्धु

इस समय मेरी यह उत्कट अभिलाषा है कि मेरी प्रजा और जो लोग मेरी सरकारके लिए जिम्मेदार हैं उनके बीच, जहाँतक सम्भव हो, कटुताका एक-एक निशान मिट जाये। जिन लोगोंने राजनीतिक प्रगतिके लिए उतावले होकर अतीतमें कानून तोड़े थे, उन्हें अब भविष्यमें कानूनका पालन करना चाहिए। जिन लोगोंपर शान्ति-सुव्यवस्था कायम रखनेको जिम्मेदारी है उनके लिए ऐसी स्थिति उत्पन्न कीजिए जिससे वे उन ज्यादतियोंकी याद भूल सकें जिनकी रोक-थामके लिए उन्हें कार्रवाई करनी पड़ी है। एक नये युगका शुभारम्भ हो रहा है। इसका प्रारम्भ मेरी प्रजा और मेरे अधिकारियोंके बीच एक ही उद्देश्यके लिए मिल-जुलकर काम करने के सम्मिलित संकल्पके साथ हो। इसलिए, में अपने वाइसरायको निर्देश देता हूँ कि वे मेरे नामपर और मेरी ओरसे राज-नीतिक अपराधियोंके साथ, सार्वजनिक सुरक्षाका खयाल रखते हुए जहाँतक ठीक लगे वहाँतक, राजानुकम्पाका प्रयोग करें। मैं चाहता हूँ कि वे इसी शर्तको ध्यानमें रखते हुए उन लोगोंको इस राजानुकम्पाका लाभ वें, जो राज्यके विरुद्ध या किसी विशेष कानून या आपत्कालीन कानूनके अन्तर्गत अपराध करनेके कारण कारावास भोग रहे हों या उस कारणसे जिनकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगा हुआ हो। मुझे विश्वास है कि जिन लोगोंको इस उदारताका लाभ मिलेगा वे अपने भावी आचरण द्वारा इसका औचित्य सिद्ध करेंगे और मेरी सारी प्रजा ऐसा आचरण करेगी जिससे भविष्यमें ऐसे अपराधोंसे सम्बन्धित कानूनोंपर अमल करनेकी जरूरत ही न पड़े।---शाही घोषणा

जिस घोषणापत्रसे उपर्युक्त उद्धरण लिया गया है वह पिछले दिसम्बर मासमें प्रकाशित हुआ था। भारत सरकार और प्रान्तीय सरकारोंने इस सम्बन्धमें जो कार्र- वाई की उसके परिणामस्वरूप उस समय कारावास भोग रहे बहुत-से लोगोंको राजानु- कम्पाका लाभ प्राप्त हुआ है। लेकिन कुछ प्रमुख "राजनीतिक अपराधी' अब भी नहीं छोड़े गये हैं। इन्हीं लोगोंमें में सावरकर-बन्धुओंकी गणना करता हूँ। वे उसी मानेमें राजनीतिक अपराधी हैं जिस मानेमें, उदाहरणके लिए, वे लोग हैं जिन्हें पंजाब सरकारने मुक्त कर दिया है। किन्तु इस घोषणापत्रके प्रकाशनके आज पाँच महीने बाद भी इन दोनों भाइयोंको छोड़ा नहीं गया है।

इनमें से बड़ेका नाम है श्री गणेश दामोदर सावरकर। इनका जन्म सन् १८७९में हुआ था और इन्हें शिक्षा-दीक्षा मामूली ही मिली थी। सन् १९०८ में नासिकमें स्वदेशी आन्दोलनमें इन्होंने बहुत प्रमुख हिस्सा लिया। जून १९०९ में इन्हें खण्ड १२१, १२१ (क), १२४ (क) और १५३ (क) के अन्तर्गत जायदादकी जब्तीके साथ आजीवन