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खिलाफत: श्री कैंडलरकी खुली चिट्ठी

इसके बाद उन्होंने यह दिखलाया है कि अपने उद्देश्यकी सिद्धि और अपने मतके समर्थनके लिए आर्मीनिया तथा यूनानके एजेंट कैसे पैसेको पानीकी तरह बहा रहे हैं। वे कहते हैं:

घोर अज्ञान तथा कपटपूर्ण झूठका यह संयोग ब्रिटिश राज्यके लिए आसन्न विपत्तिका कारण सिद्ध हो सकता है।

अंतमें वे कहते हैं:

जो राजा और प्रजा अपनी नीतिके आधार-रूपमें और विदेश नीतिके आधारके रूपमें तथ्यके मुकाबले प्रचारको अधिक पसन्द करते हैं वे मानो अपनेको खुद ही दोषी घोषित करते हैं।

इस अवतरणको मैंने यह दिखानेके लिए उद्धृत किया है कि वर्तमान ब्रिटिश नीति छलपूर्ण प्रचारसे दूषित हो गई है। 'लन्दन क्रॉनिकल' ने लिखा है कि १७वीं सदीमें टर्की साम्राज्यका विस्तार एशिया, आफ्रिका और यूरोपमें २० लाख वर्गमीलसे भी ज्यादा था, वहीं इस सन्धिकी शर्तोंके अनुसार अब घटकर प्राय: १,००० वर्गमील ही रह गया है। उसने लिखा है:

यूरोपीय टर्की अब केवल लैन्ड्स ऐंड और तामारके बीच समा सकता है और कॉर्नवाल प्रदेशका क्षेत्रफल उससे बड़ा है। यदि तुकोंने जर्मनीका साथ न दिया होता तो आज पूर्वी बाल्कनकी कमसे-कम ६० हजार वर्गमील भूमि उसके अधीन अवश्य होती।

मुझे नहीं मालूम कि 'क्रॉनिकल' का मत आम तौरपर माना जाता है या नहीं। टर्की साम्राज्यको दण्ड देनेके लिए उसे इस तरह काटकर छोटा किया गया है अथवा इसलिए कि यह न्यायोचित है? यदि तुर्कीने जर्मनीका साथ देनेकी भूल न की होती तो भी क्या मेसोपोटामिया, अरब, आर्मीनिया और फिलिस्तीनके लिए राष्ट्रीयताका सिद्धान्त लागू किया गया होता!

जो लोग श्री कैंडलरसे सहमत हैं उन्हें मैं याद दिलाना चाहूँगा कि श्री लॉयड जॉर्जने भारतकी जनताको जो वचन दिया था वह इस खयालसे नहीं दिया था कि रंगरूटोंकी भरती और उनका भेजा जाना जारी रहेगा। ऐसा बताया जाता है कि अपने कथनके औचित्यको सिद्ध करते हुए श्री लॉयड जॉर्जने कहा था:

मेरे इस कथनका प्रभाव यह पड़ा कि उसी समयसे भारतवर्षमें रंगरूटोंकी भरतीमें काफी वृद्धि हुई। वे सभी रंगरूट मुसलमान नहीं थे, पर उनमें मुसलमान बहुत थे। अब हमसे यह कहा जाता है कि मेरा यह प्रस्ताव तुर्कोंके लिए था। पर तुर्कीने उसे अस्वीकार कर दिया और इसलिए अब हम उससे पूरी तरह मुक्त हैं। लेकिन बात ऐसी नहीं है। लोग प्रायः यह भूल जाते हैं कि हमारा दुनिया में सबसे बड़ी मुस्लिम आबादीवाला साम्राज्य है। इसकी एक

१. कॉमन्स सभामें २६ फरवरी, १९२० को।