पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५३२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५००
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वरीको पुनः दोहराया था।" श्री रॉबर्ट्स कहते हैं कि उस वचनका पालन समग्र रूप में किया जाना चाहिए; वह न केवल कुस्तुन्तुनिया के सम्बन्धमें वरन एशिया माइनरके सम्बन्ध में भी पूरा होना चाहिए। वे उस वचनके पालनकी जिम्मेदारी सारे राष्ट्रकी मानते हैं और उसके किसी भी अंशके पालन न किये जानेको ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा किया गया घोर विश्वासघात मानते हैं। वे कहते हैं कि यदि विश्वासघातके आरोपका कोई अकाट्य उत्तर है तो वह दिया जाना चाहिए और प्रधान मन्त्री अपने वचनोंका पालन करें या न करें पर जो वचन वे राष्ट्रकी ओरसे देते हैं उसे तोड़नेका उन्हें कोई अधिकार नहीं है। अंतमें वे कहते हैं कि यह बात अविश्वसनीय मालूम होती है कि ऐसे वचनोंका पालन अक्षरशः और अर्थशः पूरी तरह नहीं किया गया। वे आगे कहते हैं:“मुझे सकारण विश्वास है कि मेरे इन विचारोंसे मन्त्रिमण्डलके सभी प्रमुख सदस्य भी सहमत हैं।"

मुझे सन्देह है कि शायद श्री कैंडलरको मालूम नहीं है कि इंग्लैंड में आजकल क्या हो रहा है। श्री पिक्थॉलने "न्यू एज" में लिखा है:

टर्कीके साथ युद्ध-विश्रान्ति सन्धि हुए बहुत दिन बीत गये,पर अभीतक आर्मीनियावालों के कत्लेआमकी जाँच करनेके लिए निष्पक्ष अन्तर्राष्ट्रीय जाँच कमेटी नहीं बिठाई गई। यद्यपि टकोंकी सरकारने ऐसी जाँचकी मांग भी की है पर आर्मीनियाके संगठनों और पक्षधरोंने ऐसी माँगको सुननेसे यह कहकर इनकार कर दिया कि ब्राइस और लेपसन्सकी रिपोर्ट टर्कीको दोषी ठहरानेके लिए काफी हैं। दूसरे शब्दों में उनके खयालसे केवल मुद्दईके बयानपर ही फैसला कर दिया जाये। गत वर्ष स्मरना में हुई दुखद घटनाओंकी जाँच करनेवाले मित्र-राष्ट्रोंके आयोगने यूनानियोंके दावेके विरुद्ध रिपोर्ट दी। इसलिए वह रिपोर्ट यहाँ इंग्लैंडमें प्रकाशित नहीं की गई है,यद्यपि अन्य राष्ट्रोंमें वह काफी पहले जनताके हाथोंमें पहुँच गई है।

१. २६ फरवरी, १९२० को कॉमन्स-सभामें लॉपड जॉर्जने घोषणा की थी कि “जनवरी १९१८ को दिया गया वचन सभी दलोंसे परामर्श करनेके बाद दिया गया था...वह स्पष्ट, वगैर शर्तोंका और सुविचारित था...उस वक्तव्यका भारतमें यह प्रभाव पड़ा कि उसी क्षणसे वहाँ भरती बहुत अधिक संख्या में बढ़ती गई।

२. मार्माडथक पिक्थॉल, पत्रकार एवं उपन्यासकार; बॉम्बे क्रॉनिकलके सम्पादक; निकटपूर्वकी उन्हें समीपसे और गहरी जानकारी थी।

३. अंतमें मित्र-राष्ट्रों द्वारा परित्यक्त आर्मोनिया २५ नवम्बर, १९२० को सोवियत गणतंत्र में चला गया।

४. १५ मई, १९१९ को ग्रीक फौज स्मरना भेजी गई थी और सकड़ों तुर्की नागरिकोंका कस्लेआम किया गया था।

५. अक्तूजर १९१९ में मित्र-राष्ट्रोंके जल-सेनाध्यक्षोंकी रिपोर्ट में (जो सरकारने दवा दी) स्मरनामें फौजोंके जानेकी पूरी तरह निन्दा की गईं और ग्रीक लोगोंको लूटमार, आगजनी व हत्याका अपराधी घोषित किया गया।