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खिलाफत: श्री कैंडलरकी खुली चिट्ठी

प्रधानतः तुर्क लोग रहते हैं। और यदि यही अर्थ ठीक है तो मैं कहूँगा कि वचनका खुल्लमखुल्ला भंग किया गया है, क्योंकि अब तुर्कोंके हाथमें "एशिया माइनर तथा थ्रेसके समृद्ध एवं प्रसिद्ध प्रान्तों" का कोई हिस्सा शेष नहीं रह गया है।

कुस्तुन्तुनिया में सुलतानके रहने के प्रश्नपर में पहले ही अपना मत प्रकट कर चुका हूँ। यदि कोई यह कहे कि संधिकी शर्तों द्वारा "तुर्क जातिकी अपनी निवास-भूमिमें तुर्क साम्राज्यको और कुस्तुन्तुनिया में उसकी राजधानीको बनाये रखनेकी बात" तोड़ी नहीं गई है, तो यह तो बुद्धिके दिवालियेपनका परिचय देना है। उसी भाषणका एक दूसरा अवतरण कि जिसे, मेरा खयाल है, श्री कैंडलर चाहते हैं कि में ऊपर उद्धृत अंशके साथ जोड़कर पढ़ें, यह है:

जिन प्रदेशोंमें तुर्क जातियाँ बसी हैं उनमें तुर्कीका ही राज्य रहे और कुस्तुन्तुनिया उसकी राजधानी रहे, इसपर हमें आपत्ति नहीं है भूमध्य सागर और कृष्ण सागरके बीचके मार्गको चूँकि अन्तर्राष्ट्रीय बना दिया गया है,इसलिए हमारी समझमें आर्मीनिया, मेसोपोटामिया, सीरिया और फिलिस्तीनको यह हक है कि उनके पृथक राष्ट्रीय अस्तित्वको मान्य किया जाये।क्या उसका यही अर्थ था कि टर्कीका प्रभाव बिल्कुल खतम कर दिया जाये,टर्कीके अधिराजत्वको नष्ट कर दिया जाये,और"मैन्डेट्स "की आड़में यूरोपीय-ईसाई प्रभाव दाखिल किया जाये?

क्या अरब, आर्मीनिया, मेसोपोटामिया, सीरिया और फिलिस्तीनके मुसलमानोंने इसकी स्वीकृति दी है, अथवा यह नयी व्यवस्था उनपर उन बलवान राष्ट्रों द्वारा जबरदस्ती लादी जा रही है, जिन्हें अपने कार्यकी न्याय सम्मतताका नहीं बल्कि अपने पशुबलका विश्वास है ? वीर अरबोंके हृदय में स्वतन्त्रताकी भावनाका पोषण में अवश्य करना चाहूँगा और उसके लिए सब वैध उपाय करूंगा, परन्तु में यह सोचकर काँप उठता हूँ कि संरक्षक शक्तियों द्वारा सुरक्षित लोलुप पूंजी- पतियोंके हाथोंमें उनके देशके शोषणकी योजनासे उनकी क्या दशा होगी। यदि वचन निबाहना है तो, जैसा कि 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने सुझाव दिया है, इन प्रदेशोंको पूर्ण स्वराज्य दे दिया जाये और उनपर अधिराजत्व टर्कीका ही रहे। अरबोंकी आन्तरिक स्वतन्त्रताके लिए टर्कीसे आवश्यक आश्वासन ले लिये जायें। पर टर्कीके अधिराजत्वको उठा देना और मुसलमानोंके धर्मक्षेत्रोंपर से खलीफाका संरक्षकत्व हटा देना खिलाफतकी खिल्ली उड़ाना है, जिसे कोई भी मुसलमान चुपचाप बैठकर नहीं देख सकता । प्रधान मन्त्रीके वचनोंका जो अर्थ मैंने किया है वह मेरा ही नहीं है। परम माननीय अमीर- अली सन्धिकी शर्तोंको विश्वासघात बताते हैं। श्री चार्ल्स रॉबर्ट्स ब्रिटिश जनताको याद दिलाते हैं कि तुर्कोंके साथ सन्धिके विषयमें भारतके मुसलमान जो महसूस करते हैं उसका आधार प्रधान मन्त्रीका "थ्रेस, कुस्तुन्तुनिया और एशिया माइनरके टर्की प्रदेशोंके सम्बन्धमें दिया गया वचन है, जिसे श्री लॉयड जॉर्जन विगत २६ फर-

१. सैयद अमीर अली (१८४९-१९२८); कलकत्ता उच्च न्यायालयके न्यायाधीश, प्रीवी कौंसिलकी न्याय-समितिके सदस्थ।