पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२२. पत्र: एस्थर फैरिंगको

लाहौर

मंगलवार [१० फरवरी,][१]१९२०

रानी बिटिया,

तुम्हारा भेजा हुआ प्यार-भरा तार और तुम्हारे दो पत्र मुझे एक ही रोज मिले। तुम्हारे पिताजीके सम्बन्धमें तुम्हारा पत्र मिलनेके पहले ही मैं तुम्हें तार भेज चुका था। मेरा निश्चित मत है कि उस बुलावेके जवाबमें तुम्हें यथासम्भव शीघ्र जाना चाहिए।[२] बात इतनी है कि जानेसे पहले तुमसे बहुत-सी बातें कर लेना चाहता हूँ। आजकल तुम शरीरसे कमजोर हो लेकिन इसके लिए चिन्ता न करो। मैं चाहूँगा कि आश्रमको तुम अब भी अपने घर-जैसा मानो। तुम जब भी चाहो वहाँ वापस आ सकती हो। यदि तुम मद्रास अभी चली जाना चाहती हो और डेनमार्क जाते समय आश्रम वापस आना चाहती हो तो तुम वैसा कर सकती हो। परन्तु मैं इसे अधिक पसन्द करूँगा कि मद्रास जानेसे पहले मैं तुमसे मिल लूँ। परन्तु जो तुम्हारी समझमें सबसे अच्छा ठहरे, वही करना। गर्म पानीसे स्नान करो; तुम्हें दोनोंसे छुटकारा मिल जायेगा। कटि-स्नानसे तुम्हें लाभ अवश्य होगा।

मैं चाहता हूँ कि देवदास[३] तुम्हारे साथ जाये। मिलनेपर इस सम्बन्धमें उससे और तुमसे भी बात करूँगा। पर [तुम्हारे साथ] महादेव जाये यह विचार मुझे अधिक अच्छा लगता है।

'डी०' के पास एक मिशनरीकी दी हुई एक छोटी-सी पुस्तक है। उसका नाम "इनर श्राइन" है। उसके एक भजनमें मैंने ये पंक्तियाँ पढ़ीं; "आज मेरे प्राण मधुर दुःख और विषण्ण सुखसे आप्लावित हैं,"[४] और मुझे तुरन्त तुम्हारा खयाल हो आया। सुखपूर्ण दुःख और दुःखपूर्ण सुख, ये अद्भुत व्यंजनाएँ हैं। परन्तु आज बस इतना ही।

प्रेम और मंगल कामना-सहित,

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. गांधीजी रविवार १५ फरवरी, १९२० को लाहौरसे रवाना हुए थे यह पत्र रवाना होनेसे कुछ दिन पहले लिखा गया लगता है।
  2. डेनमार्क वापस।
  3. देवदास गांधी (१९००-१९५७) गांधीजीके सबसे छोटे पुत्र; सन् १९१७ में चम्पारन जिलेके गांवों में कार्य किया और १९३० के नमक सत्याग्रहके सिलसिलेमें जेल गये; हिन्दुस्तान टाइम्सके प्रबन्ध सम्पादक, "इंडियन ऐड ईस्टनं न्यूजपेपर्स सोसाइटी" के दो बार अध्यक्ष।
  4. "विद हैपी ग्रीफ ऐड मोर्नफुल जोय, माई स्पिरिट नाउ इज फिल्ड।"