पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५२८

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४९६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन अधिकारियोंके लिए इतना काफी नहीं था। वे अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठे थे। वे इस आशयका आश्वासन चाहते थे कि श्री नेहरू शिष्टमण्डलसे किसी प्रकारसे सम्पर्क नहीं स्थापित करेंगे; क्योंकि इसी पत्रमें आगे कहा गया है:

लेकिन यद्यपि अफगान शिष्टमण्डलसे मिलने या उनसे किसी प्रकारसे सम्पर्क स्थापित करनेका मेरा कोई इरादा नहीं है, फिर भी मुझे यह चीज कतई पसन्द नहीं कि सरकारके कहनेसे मैं अपने-आपको किसी बातसे बाँध लूं, भले ही यह कोई परेशान करनेवाली बात साबित न हो। दरअसल यहाँ सवाल सिद्धान्त या अन्तरात्माका है। मुझे भरोसा है कि आप मेरी स्थिति समझेंगे।

और सरकारने, जिसकी नुमाइन्दगी इस मामले में पुलिस सुपरिटेंडेंट श्री ओक्स कर रहे थे, उनकी स्थितिको खूब समझा और यह पत्र पानेके दो दिन बाद उनके निष्कासनका आदेश जारी कर दिया। श्री नेहरू चाहते थे कि सरकारको सारे तथ्य मालूम हो जायें। अतः उसी पत्रमें उन्होंने लिखा:

अगर सरकार मुझपर कोई आदेश जारी करना तय करती है तो फिलहाल में उसका पालन करनेको तैयार हूँ। लेकिन अपने परिवारको बिना किसी सहारेके छोड़कर एकाएक यहाँसे चले जाना मेरे लिए बहुत असुविधाजनक होगा।मेरी पत्नीकी हालत ऐसी है कि उनकी देखभाल अत्यन्त सावधानीसे की जानी चाहिए और मेरी माँ चलने-फिरनेमें असमर्थ हैं तथा बिस्तरसे लगी हैं। अतः उन्हें इस तरह बेसहारा छोड़कर चले जानेमें बड़ी कठिनाई है। मेरे एकाएक चले जानसे मेरे तथा मेरे पिताके सारे कार्यक्रम बिल्कुल उलट-पलट जायेंगे और इसके कारण हम बड़ी असुविधा और चिन्तामें पड़ जायेंगे। लेकिन मैं समझता हूँ कि राज-काजके ऊँचे मामलोंमें किसीकी व्यक्तिगत सुविधाओंका खयाल शायद नहीं किया जा सकता।

किसी सुसंचालित राज्य में व्यक्तिगत सुविधाओंको भी उसी तरह राज-काजका ऊँचा मामला माना जाता है जिस तरह किसी अन्य बातको । हाँ, जहाँ समूहके लिए व्यक्तिके हितोंको बलिदान कर देना स्पष्ट रूपसे जरूरी लगे, वहाँ बात और है। मगर इस मामले में, जहाँतक लोगोंको मालूम है, ऐसी कोई बात नहीं थी जिसके कारण बीमार पत्नीसे उसके पतिको और वृद्धा माँसे उसके एकमात्र पुत्र और संर- क्षकको एक ऐसे समय में अलग कर देनेकी अमानवीयता दिखाई जाती जब उनकी देखभाल करनेवाला और कोई न हो और वे अपने घरसे भी दूर हों। मैं इसे बहुत गम्भीर किस्मका पागलपन मानता हूँ और ऐसा काम वही कर सकता है जिसके मनमें पाप हो । सरकार जानती है कि शान्तिकी शर्तें अपमानजनक हैं और उनसे मंत्रियोंके दिये हुए वचन भंग होते हैं। वह यह भी जानती है कि इस बातसे मुसलमानोंकी भावनाको बहुत गहरी ठेस पहुँची है। वह जानती है कि हिन्दुओंकी

१. मित्र राष्ट्रों द्वारा टर्कीके सम्बन्ध में घोषित शान्तिकी शर्तें।