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२०९. पत्र : देवदास गांधीको

मंगलवार [२५ मई, १९२०]

चि० देवदास,

तुम्हारा कलकत्तासे लिखा एक पत्र मिला है। तुम्हें तो मैंने बहुत सारे पत्र लिखे हैं। वे तुम्हें मिले क्यों नहीं?

में भाई शंकरलाल और जुगतरामके साथ वहाँ शनिवारको पहुँचूँगा, जबलपुर मेलसे आऊँगा। वह कब पहुँचती है, सो नहीं देखा। लेकिन ऐसा खयाल है कि वह सवेरे-सवेरे ही पहुँचती है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ७१७६) की फोटो-नकलसे।


२१०. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको

आश्रम

२५ मई, १९२०

तुमने तो मुझसे बड़ा गहरा सवाल पूछा है। मैंने बराबर यह स्वीकार किया है कि विवाह और जाति-प्रथाके सवालपर मेरे और तुम्हारे बीच बुनियादी मतभेद हैं। मैं शादीको हर व्यक्तिके लिए आवश्यक नहीं मानता। मानव-जीवनकी सर्वोच्च कल्पना- की दृष्टि से विवाहका दर्जा ब्रह्मचर्य से नीचे है, लेकिन अधिकांश लोगोंके मामलोंमें में विवाहको सर्वथा आवश्यक मानता हूँ। साथ ही में विवाहमें स्त्री और पुरुष- के चुनावपर कुछ अनुशासनिक बन्धनोंको भी लागू करना चाहूँगा, और जैसे किसी भाईका अपनी बहनसे विवाह करना अनुचित माना जायेगा वैसे ही किसी पुरुष या स्त्रीका अपने समुदाय, जिसे हम जाति कह सकते हैं, से बाहर विवाह करना में अनु- चित ठहराऊँगा। इस तरह में ऐसी स्थिति उत्पन्न कर दूंगा कि कोई व्यक्ति विवाहके सम्बन्धमें अपन समुदाय या जातिसे बाहरके लोगोंके विषयमें सोचे ही नहीं। और अगर किसी स्त्री या पुरुषको उसके लिए निर्धारित क्षेत्रके भीतर कोई योग्य पात्र नहीं मिलता तो उसे ब्रह्मचर्यके जीवन में ही सन्तोष मानना होगा। दूसरे शब्दोंमें, मैं इस मामलेमें

१. गांधीजी २९ मई, १९२० को बनारस पहुँचे थे, उस समय देवंदास बनारसमें थे।

२. जुगतराम दवे, लेखक और शिक्षाविद; पिछड़ी हुई जातियोंकी सेवामें रत रचनात्मक कार्यकर्ता।