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भाषण : अहमदाबादमें


मैं एकबार पुनः मिल-मालिकोंके नेता, संघके अध्यक्ष और वैष्णव धर्मके एक प्रतिष्ठित व्यक्तिके रूपमें सेठ मंगलदाससे यह कहना चाहता हूँ कि आप यदि यह चाहते हैं कि मजदूर आपकी आज्ञाका पूरा-पूरा पालन करें तो आप हमेशा ईश्वरको साक्षी मानकर न्याय कीजियेगा। उन्हें स्नेह-दृष्टि से देखिए तथा अपने बच्चोंपर जैसा प्रेमभाव रखते हैं वैसा ही प्रेमभाव उनपर भी रखिएगा। आप ऐसा करेंगे तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि वे कभी विश्वासघात नहीं करेंगे।

इस वृक्षके नीचे बैठकर हमने अनेक कार्य किये हैं। इसी वृक्षके नीचे ईश्वरको साक्षी मानकर हमने कार्य शुरू किया है, उस कामको अब आप पूरा करना । इसी वृक्षके नीचे मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हमारा काम समाप्त नहीं हो गया है, अभी तो उसकी शुरुआत ही हुई है। जबतक आपने मालिकोंसे प्रमाणपत्र प्राप्त नहीं कर लिया तबतक आपका काम पूरा नहीं हुआ, न मेरा और न पूज्य [ अनसूया ] बेन तथा भाई शंकरलालका काम ही पूरा हुआ है। आपने जो पुष्प मालाएँ हमें पहनाई हैं उनकी कोई कीमत नहीं, आपके कामकी कीमत है।

आजके कार्यक्रमके प्रारम्भमें हमने जिस प्रभुका स्मरण किया है उसी प्रभुका स्मरण करके में अपना भाषण समाप्त करूंगा । कताई-विभागके मजदूरोंने कुछ पैसा इकट्ठा किया है और वह किसी भी अच्छे काममें लगाने के उद्देश्यसे मुझे सौंपा गया है। पैसा तो मैं सब जगहसे लेता रहा हूँ; अच्छे कार्योंके लिए प्राय: मैं सेठ मंगल- दास-जैसे व्यक्तियोंके सम्मुख अपना हाथ फैलाता हूँ और आगे भी फैलाऊँगा, लेकिन आप इतनी भावुकतासे जो पैसा दे रहे हैं, उसे में कदापि अस्वीकार नहीं कर सकता। आपका पैसा में पूज्य बहनको देनेवाला हूँ, उसका वह मजदूरोंकी उन्नतिके निमित्त उपयोग करेंगी। मुख्यतया उसका उपयोग मजदूरोंको दारूके व्यसनसे छुड़ानेके लिए किया जायेगा, उसका दूसरा उपयोग मजदूरोंके बच्चोंको पढ़ाने और उन्हें दूध न मिलता हो तो दूध देनेमें किया जायेगा । आप कितना पैसा लाये हैं, इसकी मुझे खबर नहीं है, लेकिन आपके प्रेमभावके चिह्नस्वरूप में उसे स्वीकार करता हूँ और अपने प्रेमकी निशानीके रूपमें मैंने जैसा कहा है वैसा इसका उपयोग करूंगा।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, ३०-५-१९२०



१. साबरमती नदीके किनारे; फरवरी-मार्च १९१८ को तालाबन्दीके दिनों में प्रतिदिन यहाँ मजदूरोंकी सभाएँ होती थी। देखिए खण्ड १४, पृष्ठ २०४।