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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सवव्यापी है, सर्वज्ञ है, सब जानता है। इसीसे भजनमें कहा गया है कि: "हे ईश्वर! तू कितना महान् है और मैं कितना पामर तथा मूर्ख! मेरे जैसे पामरका अहंकार क्या, अभिमान क्या? " हमारा एक ही कर्त्तव्य हो सकता है, प्रभुका नाम लेना। सोते, बैठते, खाते, प्रत्येक क्रिया करते हुए निरन्तर ईश-भजन करना। हमारे शास्त्रों और भजनोंमें यही लिखा है। सब व्यक्तियोंका अनुभव भी यही कहता है। इसीसे हमने आजकी महान् सभाका कार्यक्रम ईश्वरकी प्रार्थनासे आरम्भ किया है।

यहाँ उपस्थित भाइयों और बहनोंस में कहूँगा कि यदि आप संसारमें अपना आना सार्थक करके ही यहाँसे जाना चाहते हों तो आप अपना प्रत्येक कार्य ईश्वरको साक्षी मानकर करें। प्रत्येक काम करनेसे पहले आप अपने से पूछें कि यह कार्य ईश्वरको पसन्द आने योग्य है या नहीं। यदि उसका उत्तर आपको 'न' में मिले तो आप उस कार्य- का त्याग करें।

मजदूरोंका क्या कर्तव्य है, इस विषयमें बात करते हुए मैंने उनके कर्त्तव्यका निरूपण इस तरहसे किया था। यदि मजदूर अपनी स्थिति में सुधार करना चाहते हैं, अपने मालिकका स्नेह सम्पादन करना चाहते हैं, तो उन्हें ईमानदार बनना चाहिए, दुर्व्यसनोंको त्याग देना चाहिए, उद्यमी अर्थात् परिश्रमी बनना चाहिए, कार्य-कुशल बनना चाहिए तथा विवेक-बुद्धिसे काम लेना चाहिए, अर्थात् उन्हें [ उचित ] आदेशका सम्मान करना चाहिए, अदबसे बोलना चाहिए। अदब रखना अर्थात् केवल मालिकके साथ अदबका व्यवहार करना ही नहीं है; उन्हें हर एकके साथ अदबसे बोलना चाहिए। मालिकके आगे हम झुकें, उसे सलाम करें और उसीके द्वारा नियुक्त अपनेसे उच्च अधिकारीका हम अपमान करें, यह विनय नहीं कहलायेगी। एक मिल-मालिकने मुझसे कहा था कि हमारी मिलमें कताई खातेके मजदूर ऐसा हठ किये बैठे हैं कि वे अमुक हेड जॉबरको निकाल बाहर करनेपर ही काम करेंगे। ऐसी हठके कारण कामपर न जानेवाले मजदूरोंसे में पूछना चाहता हूँ कि जब आपने अपने मनमें ऐसे विचारको स्थान दिया था तब क्या आपने ईश्वरको साक्षी माना था?

अब तो हमने यह निश्चय कर लिया है कि आगे हम कभी, किसी भी कारण हड़ताल नहीं करेंगे। उसके बदले अब हमारे हाथ एक दूसरा हथियार, जो हड़तालसे भी बहुत सुन्दर है, लग गया है। यदि हम किसी कारणसे असन्तुष्ट हों और मालिकके साथ विवेकपूर्ण ढंगसे बातचीत करनेके बाद भी यदि हमें राहत न मिले, हमें सन्तोष न हो तब हमें संघके पास जाना चाहिए, और वहाँ भी तसल्ली न हो तब हमें राहत प्राप्त करनेके लिए पंचोंके पास जाना चाहिए। यह पंच अभी आपके सामने बैठे हैं, मालिकोंकी ओरसे सेठ मंगलदासको और मजदूरोंकी ओरसे, पूज्य अनसूयावेन तथा भाई शंकरलालकी इच्छा एवं मेरी स्वीकृतिसे, मुझे पंच नियुक्त किया गया है। एक वर्षकी अवधिमें यदि कोई विवाद उठ खड़ा हो तो इन पंचोंको उसके कारणों की जांच करनी होगी तथा अपना निर्णय देना होगा। ये पंच जबतक हैं तबतक हड़ताल कदापि नहीं की जा सकती। कुछ स्थानोंसे अभीतक यह शिकायत की जा रही है

१. अनुमानतः मिल-मालिक संघ।