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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमली रूप दिया जा रहा है, उसे हर कोई पसन्द कर रहा है, और हूँ कि शेष कैदी भी, चाहे वे मार्शल लॉके अन्तर्गत या अन्य विशेष कानूनोंकी रूप से दण्डित हुए हैं, शीघ्र ही रिहा कर दिये जायेंगे।

हालमें ही रिहा किये गये लोगोंसे लिये गये इकरारनामोंके सम्बन्धमें आपने जो दलील दी है, मैं स्वीकार करता हूँ कि उसमें बल है, तथापि मैं यह निवेदन किये बिना भी नहीं रह सकता कि यदि लोगोंको बिना शर्तके रिहा किया गया होता तो अधिक शोभाजनक होता, खास करके इसलिए कि साधारणतया यह विश्वास किया जाता है कि अधिकांश लोगोंको अकारण ही सजाएँ दी गई थीं।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७११४) तथा नेशनल आर्काइव्ज़ ऑफ इंडिया: होम: पोलिटिकल (ए), मार्च १९२०, सं० ३२७ से।

२१. भेंट: समाचारपत्रोंके प्रतिनिधियोंसे[१]

लाहौर

९ फरवरी, १९२०

मैं नहीं मानता कि यह एक सशक्त आयोग[२] है; निष्पक्ष तो निश्चय ही नहीं है। जहाँतक विचारार्थ विषयोंकी बात है, मैं उसके बारेमें कोई आपत्ति नहीं करना चाहता। सच तो यह है कि यदि जरा भी सम्भव होता तो मैं आयोग वगैरहका कोई सहारा लेता ही नहीं, और जमीन तथा व्यापार-सम्बन्धी राहत अन्य उपायोंसे हासिल करता। परन्तु मुझे कुछ ऐसा लगता है कि जमीनकी मिल्कियत और व्यापार-सम्बन्धी अधिकारोंको, जो आज खतरे में पड़ गये हैं, सर बेंजामिन रॉबर्ट्सन सुरक्षित करा सकते हैं। पूरी स्थिति इस बातपर निर्भर है कि भारत सरकार सर बेंजामिन रॉबर्ट्सनके जरिये कितना जोर लगाती है। दक्षिण आफ्रिकासे हमारे लोगोंने अभीतक कोई तार नहीं भेजा है, यद्यपि उसकी उम्मीद प्रति क्षण कर रहा हूँ ऐसी स्थितिमें अधिक कुछ बता पाना कठिन है। श्री एन्ड्रयूज[३] मौक़ेपर है, यह बड़ी सान्त्वनाप्रद बात है। वे जनताको जानते हैं और वर्तमान दक्षिण आफ्रिकी मन्त्रिमण्डलके सदस्यों तथा दक्षिण आफ्रिकाके अन्य सार्वजनिक कार्यकर्ताओंको भी जानते हैं।

[अंग्रेजीसे]
ट्रिब्यून, १०-२-१९२०
  1. दक्षिण आफ्रिकी आयोगके सम्बन्धमें।
  2. दक्षिण आफ्रिकी सरकार द्वारा दक्षिण आफ्रिकामें एशियाश्योंकि जमीन-जायदाद रखने व व्यापार करनेके अधिकारके प्रश्नपर विचार करनेके लिए नियुक्त किया गया आयोग। भारत सरकारकी ओरसे सर बेंजामिन रॉबर्टसनने आयोगकी मदद की थी। आयोगने मार्च १९२० से जुलाई १९२० तक अपना कार्य किया।
  3. सी० एफ० एन्ड्रयूज दिसम्बर १९१९ से मार्च १९२० तक आफ्रिकामें थे।