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२०७. वक्तव्य: समाचारपत्रोंको

में देखता हूँ कि कितने ही लोगोंने शान्तिकी शर्तोके परिणामस्वरूप अवैतनिक ओहदों और खिताबोंको अपने उत्तरदायित्वपर वापस करना आरम्भ कर दिया है। मेरे मतानुसार यह कदम उतावलीसे भरा हुआ है। असह्कारका गम्भीर कदम उठाने से पहले इन शर्तोंके सम्बन्ध में पुनर्विचार करनेके लिए आवेदन-पत्र देने तथा भारतीय जनताकी भावनाओंको अभिव्यक्ति प्रदान करनेकी खास जरूरत है। इसलिए में आशा करता हूँ कि जो ऐसा कदम उठाना चाहते हैं वे केन्द्रीय संस्थासे सूचना प्राप्त किए बिना अपनी ओरसे कोई कदम न उठाये।

[गुजराती से]

गुजराती, २३-५-१९२०


२०८. भाषण : अहमदाबाद में'

२३ मई, १९२०

श्री मंगलदास सेठ, बहनो और भाइयो,

आज हम सब यहाँ इकट्ठे हुए हैं, और इसका कारण यह है कि हम जिस हड़तालमें उलझे हुए थे उससे अब मुक्त हो गये हैं। इसके अतिरिक्त सेठों तथा मजदूरों- के बीच सीधा सम्बन्ध स्थापित हो गया है। आजके कार्यक्रमका आरम्भ हमने दो भजनों से किया है। मुझे उम्मीद है कि इन भजनोंपर प्रत्येक भाई और बहनने विचार किया होगा, किया हो तो मैं इनकी ओर सबका ध्यान खींचना चाहूँगा। इन भजनोंका सुर निस्सन्देह मधुर है, लेकिन इस ओर मैं आपका ध्यान नहीं खींचना चाहता। इनके [शब्दोंके ] पीछे जो मिठास है, उनमें जो अर्थ समाया हुआ है, उसीकी ओर में आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। यदि हम दोनों भजनोंपर विचार करेंगे, तो देखेंगे कि जीव तथा शिव, मानवमात्र- पामर स्त्री और पुरुष -- तथा ईश्वर, इन दोनोंमें भारी अन्तर है। हम एक भी वस्तु ईश्वरेच्छाके बिना नहीं कर सकते। ईश्वर एक ऐसा परम महान् तत्त्व है कि हमें उसके अधीन होकर ही अपना व्यवहार करना पड़ता है; उसके सामने हमारा सत्याग्रह अथवा दुराग्रह कुछ नहीं चलता; वह

१. उदाहरणस्वरूप श्री पाकून हसनने २० मई, १९२० में मद्रास विधान परिषद्की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था।

२. केन्द्रीय खिलाफत समिति।

३. बॉम्बे सीक्रेट एक्स्ट्रैक्टसकी रिपोर्ट के अनुसार यह भाषण २३ मई, १९२० को मिल-मालिकों और मजदूरोंके प्रतिनिधियोंकी एक सभामें दिया गया था।