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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाटीदारों में यह वर्ष विवाहोंका वर्ष था। इनमें बाल-विवाहकी कुप्रथा है, और गायकवाड़ सरकारने इसपर प्रतिबन्ध लगा रखा है। ये लोग उस प्रतिबन्धके उठा लिए जानेकी माँग लेकर आए थे। जब मैंने उनसे यह कहा कि अगर मेरे हाथ में गायकवाड़ सरकारकी सत्ता हो तो इन सुकुमार बालक-बालिकाओंका विवाह करनेवालोंके विरुद्ध में ऐसा सत्याग्रह करूँ कि वे गायकवाड़ राज्यमें रह ही न पायें, तब वे मेरे विनोदके मर्मको समझ गये और उन्होंने उस दिशामें मेरी मदद लेनेका विचार तो छोड़ ही दिया; वे इस बातपर भी विचार-विमर्श करने लगे कि जिन परिवारोंमें बाल-विवाह प्रचलित हैं, उससे उन्हें कैसे विरत किया जाये? मैंने उनसे कहा कि दूसरी जातियोंमें प्रत्येक वर्ष विवाहके मुहूर्त आ सकते हैं और पाटीदारोंके लिए ही नहीं आ सकते, शास्त्र ऐसा उलटा नहीं हो सकता। ऐसे विषयके सम्बन्धमें सलाहकी भी आवश्यकता नहीं होती। जिसकी इच्छा हो वह अपनी लड़कीके विवाहको रोक सकता है और जिस तरह दूसरोंके लिए प्रत्येक वर्षं विवाह करनेकी छूट होती है, ठीक वही बात उन्हें भी समझ लेनी चाहिए। तब उन्होंने कहा कि यदि हम इस समय अपनी बच्चीको अविवाहित रखें तो हमें योग्य वर नहीं मिल सकता। इस तरह कुछ रिवाजोंके खराब होने के बावजूद उनका विरोध करना कठिन हो जाता है। मैंने उन्हें उत्तर दिया कि यदि एक भी व्यक्ति ऐसे दुष्ट रिवाजोंका विरोध करनेके लिए आगे आ जाये तो उसे और साथी मिले बिना नहीं रह सकते तथा मैंने कुछ पाटीदारोंका जिन्होंने अपनी बच्चीको बड़ी होने दिया है, दृष्टान्त पेश किया और अन्तमें कहा कि जिस व्यक्तिको अमुक वस्तुके प्रति विश्वास हो गया है वह व्यक्ति किसी भी जोखिमको उठा सकता है। लड़कीके सम्बन्धमें बड़ेसे-बड़ा खतरा तो यही है कि बड़ी उम्रकी होनेके बावजूद वह अविवाहित रहेगी। इसमें तो मुझे कोई मुश्किल दिखाई नहीं देती। जिस कन्याने विवेकपूर्ण शिक्षा प्राप्त की है उसे संयमका पालन करनेमें कोई मुश्किल नहीं होती, ऐसा मैंने देखा है। मैंने वह दृष्टान्त इन भाइयोंके सामने पेश किया। वे विदा हो गए। अन्तमें उन्होंने क्या किया, इसकी मुझे खबर नहीं है। लेकिन इस उदाहरणसे हमें पता चलता है कि [ उपर्युक्त ] रिवाजोंमें कितना बल है। फिर भी जबतक हम उस बलका प्रतिरोध नहीं करते तबतक हम जनताका हनन करनेवाले इन दुष्ट रिवाजोंको दूर नहीं कर पायेंगे।

लेकिन मैं तो बरातोंके सम्बन्धमें बात करते-करते अनमेल विवाहके सम्बन्धमें बातचीत करने लगा। बालिकाओंको बचाने के लिए पाटीदारोंके सामने जितनी मुश्किलें आती हैं उतनी सामान्य व्यक्तिको झूठे आडम्बरसे युक्त बरातोंसे मुक्ति पानेमें तो नहीं आ सकतीं। किसीकी भी राह देखे बिना जिन्हें बरातोंसे विरक्ति होती हो, वे लोग यदि स्वयं ही सुधार कर डालें तो हम इस तथा इस तरहके अनेक प्राणघातक प्रपंचोंसे अल्प प्रयास करनेपर छूट जायेंगे।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, २३-५-१९२०

१. गुजरातको एक हिन्दू किसान जाति। वे कुछ शुभ वर्षोंने ही शादी-विवाह करते हैं।