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२०५० अहमदाबादके मिल-मालिक और मजदूर

अंग्रेजीमें कहावत है कि जिसका अन्त भला, उसका सब भला। इस कहावतके अनुसार मालिकों और मजदूरोंके बीच क्षण-भरके लिए भेद उत्पन्न हुआ तथा मजदूरोंने हड़ताल की; इस बातको वे लोग तथा आम जनता थोड़े समयमें भूल जायेगी। मजदूरोंके बारेमें यह बात निःशंक होकर कही जा सकती है कि उन्होंने [इस संघर्ष में] धैर्य, दृढ़ता, विवेक आदि गुणोंका अच्छी तरहसे विकास किया। उन्होंने दारू छोड़नेका भी खासा प्रयत्न किया।

इस आन्दोलनमें दो बातें ऐसी थीं जिनके कारण शान्ति-भंग हो सकती थी। एक तो यह कि बारह मिलें चालू थीं, और दूसरा यह कि केवल थ्रांसल विभागके मजदूरोंने ही हड़ताल की थी। ये मजदूर बिना किसी अपराधके बेरोजगार हो गये थे, तथापि उन्होंने कोई दबाव नहीं डाला और सारे समय शान्ति बनी रही। इसके लिए मजदूरोंको जितनी बधाई दी जाये कम है।

लेकिन हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि इस शान्तिको बनाये रखनेमें मिल- मालिकोंका भी हाथ था। वे चाहते तो शान्ति भंग कर अथवा करवा सकते थे। यह निश्चित है कि यदि मालिक चाहते तो मजदूरोंके अडिग रहनेपर भी शान्ति बनाये रखना मुश्किल कर देते। इसके विपरीत मालिक बराबर यही विचार करते रहे कि किस तरह जल्दीसे-जल्दी इस हड़तालको खत्म किया जाये और इसीसे यह हड़ताल दस दिनों के भीतर खत्म हो सकी। मुझे उम्मीद है कि मजदूर निःसंकोच कामपर जाने लगेंगे तथा अपने मालिकोंको पूरी तरह सन्तुष्ट करेंगे। पंचोंने उनके वेतनमें जो वृद्धि करवाई है उसका वे सदुपयोग करें जिससे अनेक मालिकोंका तत्सम्बन्धी भय दूर हो जाये। एक ओर वेतन बढ़ा है तो दूसरी ओर काम करनेके घंटे कम हो गये हैं। मजदूरोंको इस बचे हुए समयका अच्छेसे-अच्छा उपयोग करना चाहिए और उन्हें पहले की अपेक्षा ज्यादा मन लगाकर जितना काम वे बारह घंटोंमें कर सकते थे उतना काम दस घंटोंमें करके अपनी योग्यता सिद्ध करनी चाहिए।

मालिकोंसे में निवेदन करता हूँ कि वे मजदूरोंके प्रति अधिक उदारताका व्यवहार करके उन्हें अपना बना लेंगे। यदि इस तरह दोनों पक्ष एक ही दिशामें प्रगति करेंगे तो मतभेद अथवा कड़वाहट होनेका तनिक भी कारण नहीं रहेगा। इस हड़तालमें से जो एक सुन्दर तत्त्व पैदा हुआ वह पंच फैसले का है। अबसे मजदूर बिलकुल हड़ताल नहीं करेंगे; जब-जब उनके और मालिकोंके बीच मतभेद होगा तब-तब वे और मालिक पंचोंकी ही मार्फत फैसला करवायेंगे। यह तत्त्व यदि जड़ पकड़ ले तो हमें किसी भी समय अहमदाबादकी मिलोंमें हड़ताल अथवा अशान्तिकी आशंका नहीं होगी।

१. गांधीजीने मजदूरोंमें नशावन्दी-अभियान शुरू किया था और ११ मईतक एक सौ मजदूर इसपर हस्ताक्षर कर चुके थे।

२. २० मईतक ३१ मिलोंमेंसे १८ मिलोंमें काम शुरू हो गया था।