पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५१४

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४८२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चिह्न है। इसलिए जहाँ प्रजामें सत्याग्रहका लेश भी हो वहाँ वह बलात्कारके आगे घुटने नहीं टेकती और सत्याग्रही जनतासे राज्याधिकारी युक्तिपूर्वक अर्थात् उसे प्रसन्न करके ही काम ले सकते हैं। इस खिलाफतके मामलेमें जनता कल अथवा बलके वशमें नहीं आ सकती है। इससे यदि मुसलमानोंकी भावनाओंको सचमुच आघात पहुँचा हो तो वे निःसन्देह साम्राज्यकी सहायता नहीं कर सकते, और यदि वे सहायता न दें तो हिन्दू ही कैसे सहायता दे सकते हैं?

थोड़े ही समय में इसपर विचार करनेके लिए कि असहकार कब और किस तरह करें, प्रमुख हिन्दुओं और मुसलमानोंकी सभा' होनेवाली है। यह सभा जिन निश्चयोंको प्रकाशित करेगी उनका यदि जनता स्वागत करेगी तो इस समय जो अशुभ हुआ दिखाई देता है उसमें से हम शुभको निष्पन्न कर सकेंगे। इस बीच जनता अत्यन्त धीरजके साथ इसकी प्रतीक्षा करती रहे। इसमें प्रजाकी तपश्चर्या है।

लेकिन इस बड़े प्रश्नके अन्तर्गत अनेक छोटे-छोटे प्रश्न भी आते हैं। उनमें से कुछ- एक विचारणीय हैं। जैसे अनेक स्थानोंसे असहकारके अनौचित्य अथवा उसमें निहित जोखिमके बारेमें मुझे बहुत सलाह दी गई है। इसपर कुछ परामर्शदाताओंको मैंने जो उत्तर दिये हैं वे 'नवजीवन' के पाठकोंके पढ़ने योग्य हैं ऐसा मानकर मैंने अपने एक अंग्रेज मित्रके पत्रके उतरमें जो पत्र लिखा था उसका सार नीचे देता हूँ।"

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, २३-५-१९२०

२०४. खादीकी महिमा

पाठक यह जानकर खुश होंगे कि भारतके प्रत्येक कोनेसे खादीकी माँग आ रही है। खादीका जितना माल था वह सब बिक गया है और फिर भी खादीके लिए माँग तो आ ही रही है। किन्तु इससे किसीको यह नहीं समझ लेना चाहिए कि अब खादी- की मांग नहीं करनी है। लोगोंमें अविश्वासकी भावना आ जानेसे खादी बननी बन्द हो गई थी; नहीं तो हमारी स्थिति ऐसी अच्छी है कि हम बहुत अधिक खादी तैयार कर सकते हैं, और यद्यपि में चाहता हूँ कि खादीकी खपत हो तथापि खादी मुझे इतनी ज्यादा प्यारी है कि मैं यह नहीं चाहता कि जो लोग खादीका उपयोग न करते हों वे सिर्फ खादीके इस संग्रहको कम करनेकी खातिर ही खादी मँगवा लें। हाथसे कते सूत- की खादीको में पवित्र मानता हूँ। इसलिए यह कोई फेंक देने की चीज नहीं है। और जहाँ जरूरत नहीं है अगर वहाँ खादीका इस्तेमाल किया जाये तो इससे देशको नुकसान होगा। खादीका सदुपयोग तो तभी माना जा सकता है कि जब हम, जहाँ-जहाँ झीने

१. १ और २ जून, १९२० को इलाहाबादमें हिन्दू और मुसलमानोंका एक सम्मेलन हुआ। लगभग ३०० प्रमुख व्यक्तियोंने इसमें भाग लिया जिनमें बेश्रीमती सॅट, मदनमोहन मालवीय, तेजबहादुर सप्रू और मोतीलाल नेहरू भी थे‌।

२. देखिए " कुछ प्रश्नोंका उत्तर ", १९-५-१९२०।