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अब क्या करेंगे?

समझौता ब्रिटिश मन्त्रियोंका वचन-भंग है। वचन दिया गया था कि जहाँ-जहाँ तुर्क लोग हैं, एशिया तथा यूरोपमें उन सब जगहोंपर टर्की साम्राज्यको अक्षुण्ण रखा जायेगा तथापि वहाँ टर्की साम्राज्यको नाममात्रकी सत्ता दी गई है। वस्तुतः देखा जाये तो सुप्रीम कौंसिलने सुलतानको [उनके] महलमें कैद कर रखा है। यह तो तुर्कीको उनकी प्राचीन शान व शौकतका निरन्तर स्मरण कराके उन्हें सताते रहने जैसा हुआ। मुसलमानोंके पवित्र स्थानोंपर खलीफाका ही अधिकार रखे जानेकी उम्मीद थी। उसके बदले इन पवित्र स्थानों तथा जिस द्वीपसमूहको मुसलमान जज़ीरत उल-अरबके नामसे पुकारते हैं, उनकी हुकूमत टर्कीके हाथसे छीन ली गई है। इस सबमें न्यायकी अथवा सत्यकी गन्ध भी नहीं है तथापि उसे न्यायके रूपमें उद्घोषित करना मनुष्यके अभिमान, उद्धतता तथा पशुबलकी परिसीमा है। यदि ऐसी एकपक्षीय शर्तोको न्यायपूर्ण माना जा सकता है तो दुनिया में बहुत सारी चीजोंको, जिन्हें हम अन्यायके रूपमें जानते और मानते आये हैं, न्यायपूर्ण मानना पड़ेगा।

तथापि माननीय वाइसराय महोदय मुसलमानोंको लक्ष्य करके कहते हैं कि उन्हें शान्ति बनाये रखनी चाहिए। जो बच गया है वह आशाजनक है और इससे उन्हें निरुत्साहित होनेके बदले उत्साहित होना चाहिए। उन्हें इंग्लैंड और टर्कीके बीचकी सच्ची मित्रताको याद रखना चाहिए तथा अब इस नये समझौते से फिरसे जो मिलाप हुआ है उस नई मित्रताकी नींवपर नवीन और तेजस्वी टर्कीके निर्माणमें भाग लेना चाहिए। वाइसराय महोदयके ये उद्गार जलेपर नमक छिड़कनेके ही समान हैं। ऐसे कठिन समयमें [ हमें ] क्या करना चाहिए? मुसलमान शान्त होकर बैठे रहें तो गत चार वर्षोंसे वे जो हलचल कर रहे हैं वह झूठी साबित हो जाती है। और मुसल- मानोंकी व्याकुलता हिन्दुओंकी व्याकुलता तथा हिन्दुओंकी व्याकुलता मुसलमानोंकी व्याकुलता है; यह तो पारस्परिक मित्रताका नियम है। फिर भी मन अशान्त होनेपर यदि हम क्रोध आ जायें, आवेशमें खूनखराबी करें तो बाजी हाथसे निकल जायेगी। किन्तु यदि हम खून खराबी न करके यह सिद्ध करें कि हममें आत्मबलिदान करनेकी शक्ति है तो यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि बाजी हाथसे निकल गई है।

इस समझौतेकी शर्तें तो लिखी ही जा चुकी हैं, यह बात सोचकर मुसलमानों तथा भारतीय जनताको डर जानेकी तनिक भी जरूरत नहीं है। यदि भारतके लोग अपने कर्तव्यका पालन करेंगे तो ये शर्तें निःसन्देह परिवर्तित हो जायेंगी। इसमें तनिक भी शंकित होनेका कारण नहीं है। परिवर्तन करवाने के लिए हिन्दुस्तानके पास एक ही वस्तु है। और वह है असहकार । असहकार करना हमारा कर्त्तव्य है क्योंकि यदि हम वैसा नहीं करेंगे तो अधर्ममें सहायक माने जायेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य अपनी समूची रैयतके सहयोगपर ही टिका हुआ है। साम्राज्यके सारे काम उसके अधीनस्थ प्रजाके सहयोगसे ही होते हैं फिर चाहे यह सहयोग प्रजा द्वारा इच्छासे दिया गया हो, चाहे बलात् ले लिया गया हो। बलात्कारके आगे समर्पण न करें, यह सत्याग्रहका मुख्य

१. भारतकी मुसलमान जनताके नाम सन्देश जो १४ मई, १९२० को प्रकाशित हुआ था। देखिए परिशिष्ट २।

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