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२०२. पत्र: ग० वा० मावलंकरको

आश्रम

जेठ सुदी ५ [२२ मई, १९२०]

भाईश्री मावलंकर,

तुम्हारा पत्र मिला। पढ़नेके तुरन्त बाद ही मैंने उसे फाड़ डाला । तुम्हारे धर्मसंकटको' में समझ सका हूँ। तुम मेरे लिखनेका अन्यथा न मानो, इतना ही मेरे लिए काफी होना चाहिए। लोग हमेशा ही मेरी इच्छानुसार कार्य करें, ऐसी आशा में कर ही नहीं सकता। मैंने अपना धर्म निभाया। अब में निश्चिन्त हुआ। तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम-भाव तनिक भी कम नहीं होगा, इतना निश्चित जानो।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (जी० एन० १२२२) की फोटो-नकलसे।

२०३. अब क्या करेंगे?

"समझौते" की शर्तें प्रकाशित हो चुकी हैं। अंग्रेजी शब्द "पीस" का अर्थ हम समझौता करते हैं, "पीस" का अर्थ शान्ति भी होता है। जो शर्तें प्रकाशित की गई हैं उन्हें यदि लड़ाईकी शर्तोंके नामसे पुकारा जाता तो यह वस्तुका वर्णन करनेवाला शब्द होता। लेकिन स्वर्गीय ग्लैडस्टनका उपहास करते उनके समान ही महान् पुरुष स्वर्गीय डिजरैलीने एक बार कहा था कि भाषाका आविष्कार मनुष्योंके विचारोंको व्यक्त करनेके लिए नहीं बल्कि छिपाने के लिए हुआ है। यह वाक्य इस समझौतेकी शर्तोपर पूर्णतः लागू होता है। जहाँ एक पक्ष दूसरे पक्षसे बलात् कुछ स्वीकार कराये, दूसरे पक्षको अपने पशुबलसे कुचल डाले, वहीं ऐसा कहना कि समझौता हुआ है, यह तो सत्य- नारायणके विरोध में महापराध करनेके समान है।

तथापि महासंघ अर्थात् सुप्रीम कौंसिलने ऐसी शर्तें निश्चित की हैं और उन्हें टर्कीके पास भेज दिया है। ऐसा करके उसने अपने लिए धारण किये गये विशेषणको झुठलाया है। जो कौंसिल न्यायको ताकपर रख दे, जो कौंसिल शक्तिके मदमें अन्धी होकर अन्यायको न्यायका जामा पहनाना चाहती है, उस कौंसिलका अपने आपको महान् (सुप्रीम) कहना जलेपर नमक छिड़कने जैसा है। कह सकते हैं कि टर्कीका

१. यह तारीख श्री मावलंकरकी पुस्तक संस्मरणोमें दी गई है।

२. देखिए “पत्र : ग० वा० मावलंकरको ", ११-५-१९२०।

३. मित्र राष्ट्रोंकी।