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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चर्चा की है। आश्रमके साथ मेरा सम्बन्ध, खिलाफत, स्वदेशी, होमरूल लीगकी प्रवृत्ति, मुझे किस तरह शान्ति मिली, सब किस तरह उसे प्राप्त कर सकते हैं आदि विषयोंपर खूब बातचीत हुई है, अभी और भी करनी है। तुम्हें दूसरोंसे इसका पता चलेगा।

जयसुखलाल आ गया; कल ही उसका स्वास्थ्य खराब हो गया है। ब्रजलालको अभी ज्वर है, लेकिन चेहरा ठीक है। तुम बहुत अनुभव प्राप्त करके आना। २६ तारीखको मुझे काशी जानेके लिए अहमदाबादसे रवाना होना पड़ेगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ५६९५) से।

सौजन्य : राधाबेन चौधरी


१९९. पत्र : शाह हफीज आलमको

[२१ मई, १९२०]

प्रिय शाह साहब,

में खिलाफतके कामके सिलसिलेमें बम्बई गया था। आज वहाँसे लौटनेपर आपका गत १४ तारीखका पत्र मिला।

में चाहता हूँ कि हमारे साथी यह बात समझें कि इस सारे संघर्षका मतलब है जेल जाना तथा सरकार द्वारा दी जानेवाली अन्य सभी यातनाओंको सहना । ऐसी आशा हमें नहीं करनी चाहिए कि एक ओर तो हम दृढ़ताके साथ असहयोग आन्दोलन चलायें और दूसरी ओर सरकार हमें गिरफ्तार या नजरबन्द न करे, न हमें जेलमें डाले और न देश निकाला दे। इन सभी कष्टोंको बिना किसी शारीरिक प्रतिरोधके सहन कर सकनेकी क्षमता ही इस संघर्षका मूल तत्त्व है। इसलिए जहाँतक एक मेरी बात है, मैं केवल सरकारकी शक्तिसे ही नहीं लडूंगा वरन् समाजको इससे भी बड़ी बातोंके लिए तैयार करूंगा। आशा है में ३० तारीखको बनारसमें होऊँगा । वहाँ इलाहाबादके मित्रोंसे मिलकर मुझे प्रसन्नता होगी। अब हमें जरूरत बड़ी-बड़ी सभाओं-

१. साधन-सूत्रसे पता चलता है कि यह पत्र सरकारी अधिकारियोंके ध्यानमें ५ जून, १९२० को आया, और इससे पहलेकी अपनी बम्बई यात्रासे गांधीजी २१ मईको लौटे थे। अतः यह पत्र २१ मई, १९२० को ही लिखा गया होगा।

२. सम्भवतः मुसलमानोंके लिए वाइसरायके सन्देशके साथ भारतके १४ मई, १९२० के असाधारण गजटमें प्रकाशित मित्र-राष्ट्रों द्वारा टर्कीके सम्मुख रखी गई शान्ति-संधिकी शर्तोंसे उत्पन्न स्थितिके सम्बन्ध में।

३. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक के सिलसिलेमें, जिसमें गांधीजीने यह प्रस्ताव रखा कि कांग्रेसको अविलम्ब देशके सामने असहयोग आन्दोलनका कार्यक्रम प्रस्तुत करना चाहिए।