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१९. पत्र: नरहरि परीखको

रविवार [९ फरवरी, १९२०][१]

भाईश्री नरहरि,

तुम्हारे आजके पत्रने तो मुझे घबराहटमें डाल दिया है। लेकिन परसों तुम्हारा जो तार मिला वह बादकी तारीखका होना चाहिए ऐसा भाई जीवराज मेहताका अनुमान है। और इससे तथा अन्य किसी भी तारके न आने से शान्ति मिलती है। पंजाबका काम न हो तो मैं यहाँ अब एक क्षणके लिए भी न रहूँ बल्कि वहाँ आकर महादेवसे गले मिलूं। लेकिन फिलहाल तो मैं उन्हें तुम सब लोगोंके द्वारा ही गले लगा सकता हूँ। ऐसे अनेक बादल मेरे सिरपर आए और चले गये। यह भी चला जायेगा--इस विश्वासके आधारपर में काम कर रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११८८४) की फोटो-नकलसे।

२०. पत्र: एल० फ्रेंचको

लाहौर

९ फरवरी, १९२०

प्रिय श्री फ्रेंच,

मेरे ३ तारीखके पत्रका[२] आपने शीघ्र ही सविस्तार और स्पष्ट जवाब दिया, उसके लिए आपका आभारी हूँ। मुझे विश्वास है कि जिस ढंगसे शाही घोषणाको[३]

  1. डा० जीवराज मेहता इस महीने में कुछ समपतक गांधीजीके साथ थे; (देखिए "पंजाबकी चिट्ठी-१३", २९-२-१९२०)। १६ फरवरी, १९२० को जिस दिन रविवार पड़ता था, दोनों बनारस पहुँचे। ऐसा लगता है कि गांधीजीने यह पत्र नरहरि परीखको ३१ जनवरी, १९२० (देखिए खण्ड १६) के आसपास लिखे गये पत्रके बाद लाहौरसे लिखा होगा, जहाँ वे २३ जनवरी, १९२० और १५ फरवरी, १९२० के बीचको अवधिमें अधिकांशतः रहे थे। नरहरि परीखको लिखे पत्रमें उन्होंने महादेव देसाईकी बीमारीकी चर्चा की है। तो अगर हम ऐसा माने कि यह पत्र अगले रविवार यानी २ तारीखको लिखा गया था तो इसका मतलब इस तिथिको खींचकर बहुत पीछे ले आना होगा। अस्तु, ऐसा मानना अधिक समीचीन लगता है कि यह पत्र ९ फरवरी, १९२० को पड़नेवाले रविवारको लिखा गया था।
  2. देखिए "पत्र: एल० फ्रेंचको",३-२-१९२०।
  3. यह घोषणा २३ दिसम्बर, १९१९ को जारी की गई, जिसमें राजनैतिक बन्दियोंको सम्राट् द्वारा क्षमादान दिया गया था।