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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भूतकालकी भाँति भविष्य में भी इस्लाम धर्मका स्तम्भ बना रहेगा। वाइसरायके सन्देशका समापन इस धृष्टतापूर्ण उक्तिसे होता है:-"मेरा विश्वास है कि इस खयालसे आप लोग बिना किसी प्रकारका असन्तोष दिखाये साहसके साथ सन्धिकी शर्तोंको स्वीकार कर लेंगे और सम्राट्के प्रति अपनी राजभक्ति यथापूर्व प्रखर और उज्ज्वल बनाये रखेंगे जैसी कि वह कई पीढ़ियोंसे रही है। "यदि मुसलमानोंकी राजभक्ति उज्ज्वल बनी रहे तो निःसन्देह इसका कारण यह नहीं होगा कि भारत- सरकारने उसे तोड़ डालनेके लिए उसपर काफी बोझ लादनेमें कुछ कसर रखी हो; वहु तो इसलिए उज्ज्वल रहेगी कि मुसलमान अपनी शक्ति पहचानते हैं, उन्हें पता है कि उनका पक्ष न्यायपर आधारित है। यद्यपि एक ऐसे प्रधान मंत्रीके प्रभावमें, जो लगातार काफी समयतक सत्तारूढ़ रहने के कारण अत्यन्त दुःसाहसी हो गये हैं. जिन्हें न वचन देनेमें कुछ लगता है और न उसे तोड़नेमें--ग्रेट ब्रिटेन गुमराह हो गया है फिर भी मुसलमान अपनी शक्तिके बलपर न्याय प्राप्त कर सकेंगे।

अतएव यद्यपि मैं मानता हूँ कि सन्धिकी शर्तोंमें या वाइसरायके तत्सम्बन्धी संदेश में ऐसी कोई बात नहीं है जो मुसलमानों या भारतीयोंके मनमें आशा या विश्वासका संचार करे फिर भी मैं समझता हूँ कि निराश होने या करनेका। कोई कारण नहीं है। यही समय है कि मुसलमान लोग पूर्ण आत्मसंयमसे काम लें, अपनी शक्तिका संगठन करें और यद्यपि वे कमजोर हैं तथापि ईश्वरमें दृढ़ आस्था रखकर इस संग्रामको दूने जोशसे तबतक चलायें जबतक कि न्याय प्राप्त न हो जाये। अगर भारतवर्षं--हिन्दू और मुसलमान दोनों--एक होकर काम करे और सन्धिकी इन शर्तों द्वारा मानवताके प्रति जो यह अपराध हुआ है उससे अपनी साझेदारी हटा ले, तो सन्धिकी शर्तोमें भारत शीघ्र ही सुधार करवा सकेगा और यदि दुनियाको नहीं तो कमसे-कम अपनेको और ब्रिटिश साम्राज्यको स्थायी शान्ति प्रदान करेगा। निःसन्देह हमारा यह संघर्ष कटु, तीव्र और सम्भवतः दीर्घकालिक होगा पर इसमें जो कुछ त्याग करना पड़े वह सर्वथा करणीय है। यह समय मुसलमान और हिन्दू दोनोंकी परीक्षाका है। क्या खिलाफतकी तौहीन मुसलमानोंके लिए चिन्ताका विषय है? यदि है तो क्या वे आत्मसंयमके लिए तैयार है? हिंसाका सम्पूर्ण परित्याग करनेके लिए और हर तरहकी क्षति बरदाश्त करते हुए असहयोग अपनानेको तैयार है? क्या हिन्दू लोग अपने मुसलमान भाइयोंके साथ इस हदतक सहानुभूति रखते हूं कि वे उनकी तकलीफोंमें पूरा हिस्सा बँटाने को तैयार हैं? खिलाफतके भाग्यका निर्णय इन प्रश्नोंके उत्तरसे होगा, सन्धिकी शर्तोसे नहीं।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-५-१९२०