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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे निराशाके वशीभूत होकर हिंसाकी धारामें बह गये होते। मैं स्वीकार करता हूँ कि असहयोग खतरेसे खाली नहीं है। और असहयोग में हिंसाका होना केवल एक सम्भावना है, जब कि असहयोग न होनेपर हिंसा निश्चित है। और यदि सभी प्रमुख व्यक्ति--अंग्रेज,हिन्दू आदि--- इसका समर्थन त्याग देंगे तो हिंसाकी और भी अधिक सम्भावना हो जायेगी।

मेरा खयाल है कि हणारे मित्रने जो सिफारिश की हैं उनका मुसलमान लोग पूरी तरहसे पालन कर रहे हैं। यद्यपि भारतीय मुसलमानोंको मालूम है कि भाग्य क्या होगा, फिर भी वे लोग टर्कीसे सन्धिकी वास्तविक शर्तोकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। असहयोग आन्दोलन शुरू करनेसे पूर्व निश्चय ही वे सन्धिकी शर्तोंमें परिवर्तन करानेके लिए हर सम्भव तरीका अपनायेंगे और निस्सन्देह तबतक असहयोग नहीं होगा जबतक यह आशा रहेगी कि भारत सरकार मुसलमानोंको सक्रिय सहयोग देगी-- ऐसा सशक्त सहयोग जिसके बलपर सन्धिकी शर्तें यदि ब्रिटिश राजनयिकों द्वारा दिये गये वचनोंके अनुरूप न हों तो उन शर्तों में परिवर्तन करवाया जा सके। पर यदि सभी साधन असफल हुए तो आत्माभिमानी मुसलमान, जो अपने धर्मको अपनी जानसे भी प्रिय मानते हैं, इससे कम क्या कर सकते हैं कि ब्रिटिश मन्त्रियों और भारत सरकारके साथ सहयोग करनेसे इनकार कर दें और उनसे कोई सम्बन्ध न रखें। और यदि हिन्दू और अंग्रेज लोग मुसलमानोंकी मैत्रीको मूल्यवान मानते हैं, और इस बातको स्वीकार करते हैं कि मुसलमानोंकी माँगें पूर्णतया न्यायसंगत हैं तो वे मुसलमानोंके साथ वचन और कर्म द्वारा सहयोग करनेके अतिरिक्त क्या कुछ और करेंगे?

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-५-१९२०


१९६. प्रतिज्ञा-भंग

टर्कीसे सम्बन्धित शान्तिकी जिन शर्तोंकी बहुत समयसे प्रतीक्षा की जा रही भी वे हमें इससे पहलेवाला लेख प्रकाशित होने के बाद अब मिली हैं। मेरी नम्र रायमें ये शर्तें सुप्रीम कौंसिल और ब्रिटेनके मन्त्रियोंकी तौहीन है तथा ईसाई धर्ममें गहरी श्रद्धा रखनेवाले एक हिन्दूकी हैसियत से मुझे ऐसी राय देनेका अधिकार हो तो ईसामसीहकी शिक्षाके विपरीत है। गृह-कलह तथा भीतरकी अशान्तिसे शक्ति- हीन टर्की अपने सम्बन्धमें इस उद्दण्डतापूर्ण निर्णयको शायद स्वीकार कर ले और भारतके मुसलमान भी शायद उरके मारे वैसा ही करें। हिन्दू लोगभी डरसे, उदासीनता के कारण अथवा स्थिति ठीकसे न समझने के कारण इस महान् संकटके समय चाहे अपने मुसलमान भाइयोंका साथ न दें परन्तु तथ्य यह है कि इंग्लैंडके प्रधान मन्त्रीने जो वचन दिया था उसे बुरी तरह तोड़ा गया। राष्ट्रपति विल्सनके

१. देखिए " कुछ प्रश्नोंका उत्तर ", १९-५-१९२०।