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कुछ प्रश्नोंका उत्तर

सरकारके साथ हर तरह के सहयोग से हाथ खींच लेना शासन-कार्यको असम्भव बना देना है। यह बात सही नहीं है। परन्तु यह सच है कि इस तरहके असहयोगसे हर तरहका अन्याय असम्भव हो जायेगा।

पत्र लिखनेवालेका विचार है कि भारत सरकारने जब यथासाध्य सब-कुछ किया तब उस सरकारके साथ असहयोग करना अनुचित है। मेरी रायमें यद्यपि यह सच है कि भारत सरकारने काफी कुछ किया, पर जितना उसको करना चाहिए था या जितना वह कर सकती है उसका आधा भी उसने नहीं किया है। कोई भी सरकार महज विरोध- प्रदर्शन करके आगे कोई कार्रवाई करनेकी जिम्मेदारीसे अपनेको मुक्त नहीं मान सकती, खास तोरसे तब जब वह जानती है कि जिन लोगोंका प्रतिनिधित्व वह करती है वे इतने विक्षुब्ध हैं जितने कि खिलाफतके सवालपर लाखों भारतीय मुसलमान क्षुब्ध हैं। भूखे आदमी के साथ कोरी सहानुभूति दिखाने से उसका कुछ लाभ नहीं हो सकता। उसे या तो रोटी दी जाये या उसे मरने दिया जाये। और ऐसे नाजुक समय में जहाँसे हो सके कोशिश करके भूखसे मर रहे उस व्यक्तिके पास भोजन-सामग्री पहुँचानी चाहिए। भारत सरकार आज खिलाफत आन्दोलनका नेतृत्व कर सकती है ओर आग्रहपूर्वक कह सकती है कि एक ब्रिटिश मन्त्रीने जो वचन दिया था उसे पूरा किया जाये। श्री लॉयड जॉर्ज- के निर्लज्जतापूर्ण आसन्न विश्वासघातके प्रति विरोधस्वरूप क्या भारत सरकारने इस्तीफा दिया है? भारत सरकार गुप्त खरीतोंकी आड़में क्यों छिपती है? लॉर्ड हार्डिगने इससे कहीं अधिक एक कम नाजुक अवसरपर संवैधानिक "अविवेक" से काम लेकर खुले शब्दोंमें दक्षिण आफ्रिका निष्क्रिय प्रतिरोध आन्दोलनसे सहानुभूति दिखलाई थी और इस प्रकार भारतमें क्षोभ और ग्लानिकी बढ़ती ज्वालाको शान्त कर दिया था, यद्यपि इसके लिए उन्हें दक्षिण आफ्रिकाके तत्कालीन मन्त्रिमण्डल और ग्रेट ब्रिटेनके कुछ राजनीतिज्ञोंका कोपभाजन बनना पड़ा। आखिरकार भारत सरकारने अधिकसे-अधिक जो-कुछ किया है वह यह है कि उसने मुसलमानोंकी उचित मांगोंको मित्रराष्ट्रोंके सामने रखा और उनपर जोर दिया। क्या वह इससे भी कुछ कम कर सकती थी? इससे कुछ कम करनेपर क्या वह कलंकित हुए बिना रह सकती थी? भारतके मुसलमान तथा हिन्दू इस संकटा- पत्र अवस्था में भारत सरकारसे कमसे-कमकी आशा न रखकर अधिकसे-अधिक जो कुछ वह कर सकती हो, उसकी आशा रखते हैं। एकाधिक वाइसरायोंने इससे भी छोटे सवालोंपर इस्तीफे दिये हैं। एक लेफ्टिनेन्ट गवर्नरने अभी कुछ समय पूर्व स्वाभिमान- पर ठेस लगने के कारण इस्तीफा दे दिया था। खिलाफतका सवाल एक परम पवित्र सवाल है, जो कई करोड़ मुसलमानोंको दिलसे प्यारा है। उसी खिलाफतपर चोट पहुँचनेका खतरा उपस्थित है। इसलिए मैं अपने उक्त अंग्रेज मित्रसे, और भारत में रहनेवाले प्रत्येक हिन्दूसे, चाहे वह नरम दलका हो या उग्र दलका, अनुरोध करता हूँ कि वे मुसलमानोंका साथ दें और इस प्रकार भारत सरकारको अपना कत्तंव्य-पालन करनेके लिए बाध्य करें, तथा सम्राट्के मन्त्रियोंको लाचार कर दें कि वे अपने कर्त्तव्यका पालन करें।

चारों ओर काफी चर्चा है कि सक्रिय असहयोगसे हिंसा शुरू होगी। पर मैं कह सकता हूँ कि यदि भारतमें मुसलमानोंके सामने असहयोग-जैसा कोई रास्ता न होता तो