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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

काम करने को कहा, जिन्होंने यावज्जीवन खद्दर ही पहना। इसमें किसी तरहकी लज्जाका अनुभव करनेकी बात तो दूर, वे गौरवका अनुभव करते थे। उन्होंने कहा कि मैं मानती हूँ, खद्दरको पुनः प्रतिष्ठित करना कठिन है, लेकिन सभी बड़े कार्य कठिन हुआ करते हैं। जबतक भारतके लोग चीन, जापान, फ्रांस तथा अन्य देशोंसे मँगाये रेशमी वस्त्रोंका उपयोग न करनेका दृढ़ निश्चय नहीं कर लेते, और इस संक्रान्ति कालमें, भारतीय बहनें आज जो मोटा सूत तैयार कर रही हैं, उसीसे बने कपड़े पहनने में सन्तोष नहीं मानते तबतक भारत वैसा सुन्दर कपड़ा कभी भी तैयार नहीं कर सकता जैसा सुन्दर कपड़ा पहले तैयार करता था। इसके अतिरिक्त जो लोग देशकी वास्तविक स्थितिको महसूस करते हैं उनके सामने इसकी गरीबी और फटेहालीको देखते हुए और कोई रास्ता भी नहीं रह जाता। उन्होंने मंचपर उपस्थित व्यक्तियोंसे आगे बढ़कर लोगोंको रास्ता दिखानेका अनुरोध किया और अपने इस उद्बोधनपर जोर देनेके लिए यह श्लोक उद्धृत किया:

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

और चौधरी-दम्पतीको इस श्लोक कहे गये सत्यका प्रयोग बहुत जल्दी अपने घरमें ही करना था, क्योंकि गत १४ तारीखको ही उनके ज्येष्ठ पुत्रकी शादी होनेवाली थी और इस उद्देश्यले उन्हें उसके लिए कपड़े बनवाने थे। पंडित रामभजदत्त चौधरी लिखते हैं:

शादीको सभी पोशाकें बनारस में तैयार स्वदेशी रेशमी कपड़ेसे बनवाई गई हैं। यह कुछ कीमती तो जरूर है, लेकिन चीज बहुत उम्दा है। हमने बड़े आग्रहपूर्वक विदेशी कपड़ेका उपयोग वर्जित रखा है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १९-५-१९२०

१९५. कुछ प्रश्नोंका उत्तर

आपका सात तारीखका पत्र मिला। आपने लिखा है कि 'यंग इंडिया' में असहयोगपर आपके लेखोंको पढ़कर में अपना स्पष्ट मत प्रकट करूँ। आपके पत्रके और आपके इस अनुरोधके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। मैं जानता हूँ कि आपकी इच्छा मात्र सत्यका अनुसन्धान करना और उसीपर आचरण करना है, इसलिए में निर्भयताके साथ नीचे लिखे चन्द शब्द लिखता हूँ।५ मईके अंकमें आपने लिखा है कि असहयोग तो "सरकार-विरोधी भी

१. जैसा श्रेष्ठ लोग करते हैं, सामान्य लोग भी वैसा ही करते हैं। जो मान श्रेष्ठ लोग स्थापित करते हैं, उसी मानका अनुकरण सामान्य लोग भी करते हैं। गीता, ३-२१।

२. सरलादेवी और उनके पति पंडित रामभजदत्त चौधरी।