पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/५००

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

मैं वहाँ २९ तारीखको पहुँचूँगा। बम्बईसे रातको निकलूंगा, इसलिए गाड़ी तो एक ही है। मैं मान लेता हूँ कि पंडितजी तो वहां होंगे ही। पंडित मोतीलालजीने लिखा है कि सब लोग किसी होटलमें ठहरें। लेकिन मैंने उनसे कहा है कि यदि पंडितजी वहाँ हुए तो वे मुझे और कहीं ठहरने ही नहीं देंगे।

श्री मॉण्टेग्युके उत्तरकी प्रति तो मैं तुम्हें भेज ही चुका हूँ। यहाँ पांडिचेरीवाले श्री ऐयर आये थे; तीन दिनतक रहे।

मजदूरोंकी हड़ताल आज खत्म होगी, कल वे कामपर जायेंगे, ऐसा मानता हूँ। मेरा खयाल है कि तुम्हें [मैंने] सब पत्रिकाएँ भेजी हैं।

अभी-अभी फातिमा बहन अपनी सासके साथ मुझसे मिलने आई हैं; इसलिए पत्र समाप्त करता हूँ।

बापूके शीर्वाद

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती पत्र (एस० एन० ७१७४) की फोटो-नकलसे।

१९४. स्वदेशीका उत्तरोत्तर विकास

'यंग इंडिया' के पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा और साथ ही खुशी भी कि खद्दर-सम्बन्धी पिछले लेखके' परिणामस्वरूप न केवल आश्रम में जमा सारा माल बिक गया है, बल्कि बलूचिस्तान, नीलगिरीके इलाकों, यहांतक कि अदनसे भी उसकी मांग आने लगी है। अपेक्षा भी यही की जाती थी। अगर भारतके इस प्राचीन कुटीर उद्योगको पुनः प्रतिष्ठित कर दिया जाये. - अगर लाखों-करोड़ों औरतें अपने खाली समय में फिर हाथ से कताई करने लग जायें और इसी तरह खाली समयमें पुरुष बुनाईका काम करने लग जायें--तो उसका परिणाम भारतमें एक शान्तिपूर्ण किन्तु प्रभावकारी क्रान्तिके रूपमें ही प्रकट होगा और भारतसे जो करोड़ों रुपया व्यर्थ ही बाहर चला जाता है, वह देशमें ही रह जायेगा; और साथ ही जो बचत होगी वह मुट्ठी-भर पूंजीपतियों के हाथों में जमा नहीं होगी बल्कि लाखों-करोड़ों गरीबोंमें बँट जायेगी। इसका मतलब यह नहीं कि हम भारतमें पूंजीपतिवर्गको नहीं चाहते। वे तो हैं ही, लेकिन उनमें इतनी सामर्थ्य है कि वे अपने हितोंकी स्वयं रक्षा कर सकें। हमें प्रयत्न तो उन करोड़ों गरीबोंको ऊँचा उठानेका करना है, जो गरीबीकी चक्कीमें पिस रहे हैं और फलतः जिनका घोर पतन हो गया है। उन्हें शीघ्रातिशीघ्र और कारगर ढंगसे ऊँचा उठानेका एकमात्र उपाय हाथकी कताई और बुनाईके कामको बढ़ावा देना है। अतः

१. बनारस में।

२. प्रस्तुत लेखको गांधीजीका लिखा माननेका आधार गांधी स्मारक निधिमें सुरक्षित इसका उन्हींको लिखावटमें तैयार किया गया मसविदा है।

३. देखिए "खइरका उपयोग ", २८-४-१९२०।