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१८. पत्र: एस्थर फैरिंगको

रविवार [८ फरवरी, १९२०][१]

रानी बिटिया,

मैंने तुम्हारा एस० को लिखा हुआ दर्द-भरा पत्र देखा। मुझे खुशी है कि तुमने उसमें अपने दिलकी सारी बातें उँडेल दी है। मैंने आज तुम्हें यह तार[२] दिया है कि यदि ठहरना जरा भी सम्भव हो तो मेरे पहुँचनेसे पहले वहाँसे न जाओ।[३] मैं तुमसे कई दिन प्रातःकालमें लम्बी बातचीत करना चाहता हूँ, जिसके लिए समय केवल आश्रममें ही मिल पाता है। मैं तुमसे यह भी आग्रह करना चाहता हूँ कि जिन स्नानोंका सुझाव मैने दिया है, उन्हें अवश्य करो। वहाँ कह दो कि तुम्हारे पास पानी पहुँचा दिया जाया करे।

किसने कहा कि तुम रानी बिटिया नहीं हो? अपने अद्भुत प्रेम और दिलकी सचाईसे तुमने अपने-आपको मेरा सबसे अधिक प्रिय बना लिया है। तुम एक क्षणके लिए भी यह न सोचना कि तुम्हारी योग्यताके बारे में मेरे हृदयपर जो छाप है, वह तुम्हारे स्वभावकी स्वच्छन्दताके कारण जरा भी बदल सकती है। तुम्हें अपने भीतर कहाँ मजबूती लानी है, यह बताना मेरा अधिकार है। यदि शरीर प्रभुका मन्दिर है तो उसकी पूरी-पूरी हिफाजत करना जरूरी है--उससे लाड़ अवश्य न किया जाये, लेकिन उसके प्रति उपेक्षा या उदासीनता भी अवश्य ही नहीं होनी चाहिए।

सदैव मंगल कामनाओं और हार्दिक प्रेम-साहित,

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजीसे]
माई डियर चाइल्ड
  1. पत्रके मजमूनसे लगता है कि यह एस्थर फैरिंगके नाम रविवार, १ फरवरी, १९२० को लिखे पत्रके बाद और रविवार, १५ फरवरी, १९२० को लिखे पत्रसे पहले लिखा गया था। १५ फरवरीको ही गांधीजी लाहौरसे रवाना हुए थे। अत: यह पत्र इन दो तिथियों के बीच पड़नेवाले रविवार अर्थात ८ फरवरीको ही लिखा गया होगा।
  2. यह तार उपलब्ध नहीं है।
  3. साबरमती आश्रमसे।