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पत्र: देवदास गांधीको

करता हूँ कि मुसलमान न तो आत्म-संयम छोड़ेंगे और न हताश होंगे। पूरी समझदारीके साथ पर्याप्त आत्मबलिदान किया जाये तो मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि न्याय प्राप्त किया जा सकता है। शान्ति-संधिकी शर्तें कोई ब्रह्म-वाक्य तो है नहीं; उनमें रद्दोबदल की जा सकती है। अब जो प्रश्न रह जाता है वह यह है कि क्या मुसलमान पूरा आत्म-संयम रख सकते हैं और साथ ही पर्याप्त संख्या में आत्म-बलिदान कर सकते हैं? किसी भी प्रकारकी हिंसा इस पुण्य-कार्यको दूषित कर देगी। मेरी दृढ़ मान्यता है कि हिंसासे बचने और भारतीय मुसलमानोंके घावको भरनेका एकमात्र साधन असहयोग ही है। यदि अन्य भारतीय और अंग्रेज भी अपने मुसलमान सह-प्रजाजनोंके साथ सहयोग करें तो यह कार्य आसान हो जाये तथा देशमें अहिंसाकी स्थिति भी बनी रहे।

मुझे भरोसा है कि खिलाफत समिति अविलम्ब हिन्दुओं और मुसलमानोंका एक संयुक्त सम्मेलन बुलायेगी जिसमें संधिकी शर्तोंमें ब्रिटिश मन्त्रियोंके वादे और भारतीय मुसलमानों की जानी-मानी धार्मिक भावनाओंके अनुरूप रद्दोबदल करवानेके लिए क्या कदम उठाये जायें, इसपर विचार किया जायेगा।

[अंग्रेजीसे]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १८-५-१९२०


१९३. पत्र : देवदास गांधीको

आश्रम

अमावस्या [१८ मई, १९२०]

चि० देवदास,

तुम्हारा १२ तारीखका पत्र मुझे आज ही मिला। मेरे पत्रकी कमी तुम्हें लगभग एक सप्ताहतक महसूस हुई होगी, क्योंकि मैंने यह जानकर तुम्हें कोई पत्र न लिखा था कि तुम आनेवाले हो। जब तुम्हारा कोई भी पत्र न आया और मैं राह देखते- देखते थक गया तब मैंने खुद ही पत्र लिखना शुरू किया। फिर भी तुम्हारी ओरसे कोई पत्र न आनेपर मैंने तार दिया और अब तुम्हारे पत्र आने लगे हैं।

पंडितजीके प्रेमका जितना बखान करोगे वह सब सच है। अपने हृदयकी विशालताके कारण ही वे इतने सारे कार्य कर सकते हैं।

तुम्हारे बारेमें मुझे सामान्यतया चिन्ता हो ही जाती है। लेकिन यह सोचकर शान्त हो जाता हूँ कि तुम्हारा चरित्र तुम्हारी रक्षा करेगा ही।

१. पत्रमें अहमदाबाद में मजदूरोंकी जिस हड़तालकी चर्चा की गई है वह २१ मई, १९२० को समाप्त हुई थी। १९२० के मई महीनेमें अमावस्था १८ तारीखको थी।