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पत्र: एस्थर फैरिंगको

अधिकार है; इतना ही नहीं बल्कि यह तो स्त्रियोंका कर्तव्य है-- अपने प्रति, पुरुषोंके प्रति और हिन्दुस्तानके प्रति!

[गुजराती से]

नवजीवन, १६-५-१९२०

१९०. पत्र : एस्थर फैरिंगको

आश्रम

१६ मई, १९२०


रानी बिटिया,

मेरा सब काम बहुत नियमित ढंगसे चल रहा था, लेकिन शान्ति-सन्धिकी शर्तोंके कारण उसमें व्यवधान उपस्थित हो गया। इसलिए कोई लम्बा स्नेह-भरा पत्र नहीं लिख पा रहा हूँ। इस बातसे बड़ी खुशी हुई कि तुम शीघ्र ही इसी १९ को रवाना हो रही हो। आशा है तुम्हारे तारके उत्तरमें भेजा गया मेरा तार' तुम्हें मिल गया होगा। यहाँ हम लोगोंको क्या-कुछ झेलना पड़ रहा है, इसकी चिन्ता हरगिज न करना। हम सबका रखवाला ईश्वर है और अगर हम उसका और केवल उसीका आसरा रखे रहे तो जो-कुछ होगा ठीक ही होगा । हम जिन्हें विपदा कहते हैं, वे भी अन्ततः हमारे लिए वरदान ही साबित होते हैं। घरपर तुम पूरा आराम करो और शान्तिपूर्वक रहो, और चूंकि तुम भारतमें ही रही हो और आश्रमके सम्पर्कमें आई हो इसलिए तुम ऐसा आचरण करो जिससे जब तुम्हारे पिता तुमसे मिलें तो उन्हें लगे कि तुम अब पहलेकी अपेक्षा और अच्छी ईसाई बन गई हो । जब तुम पूरा आराम कर लो और शरीर तथा मनसे स्वस्थ महसूस करने लगो तो लौट आओ। प्रभुसे यही प्रार्थना है कि तुम्हारी यात्रा' निरापद हो, घरपर तुम सुख और आनन्दसे रहो और सही- सलामत लौट आओ। पत्र तो तुम नियमित रूपसे लिखती ही रहना । मुझे घरका पता भेजना न भूलना।

सस्नेह,

तुम्हारा,

बापू

[अंग्रेजी से]

माई डियर चाइल्ड

१. मित्र राष्ट्रों द्वारा टर्कीके सम्बन्धमें, देखिए परिशिष्ट १।

२. यह उपलब्ध नहीं है।

३. डेनमार्ककी।

१७-३०