पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४९५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६३
विधवाओं के सम्बन्धमें कुछ और विचार

एसा वातावरण तैयार करनेकी खातिर, जिससे हड़ताल निर्विघ्न पूरी हो जाये तथा मजदूर फिरसे कामपर जाने लगें, विवादग्रस्त विषयोंमें नहीं पड़ना चाहता।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १६-५-१९२०.

१८९. विधवाओंके सम्बन्धमें कुछ और विचार

वैधव्य हिन्दू-धर्मकी शोभा है। अखण्डित पातिव्रतका अर्थ तो यही हो सकता है कि एक बार जिसे ज्ञानपूर्वक पति माना और जाना उसका देहपात होनेपर भी उसीका स्मरण करते हुए सन्तोष करें, इतना ही नहीं बल्कि उस स्मरणमें आनन्दका अनुभव करें। तदनुसार आचरण करके भारतकी अनेक विधवाएँ प्रातःस्मरणीय बन गई हैं। अभी कुछ दिनों पहले ही मुझे गंगास्वरूप रमाबाई रानडेसे मिलने जानेका अवसर प्राप्त हुआ था। उनके अपने कमरेमें ही मैंने उनके दर्शन किये थे। इस कमरेके बीचों- बीच एक कोच रखा हुआ था और उसपर स्वर्गीय न्यायमूर्ति रानडेकी तस्वीर रखी हुई थी। मैं समझ तो गया, लेकिन मेरा विचार सही था अथवा नहीं, यह जानने के लिए मैंने उनसे पूछा:'यह तस्वीर कोचपर किसलिए रखी हुई है?" इन्होंने कहा: “यह कोच उन्हींका था, वे हमेशा इसीपर बैठते थे; इसीसे इस कोचको मैंने उनकी तस्वीरके लिए ही रख छोड़ा है और इसकी छायाके नीचे ही में सदा रहती तथा सोती हूँ। इन पवित्र शब्दोंको सुनकर में आनन्दमें डूब गया और वैधव्यकी शोभाको और भी अधिक समझ सका। भारतमें स्थान-स्थानपर ऐसी पतिव्रता रमाबाइयाँ हैं, इस बातसे मैं भली-भाँति परिचित हूँ।

लेकिन पत्नीव्रती पुरुष कहाँ होंगे? यदि नहीं हैं तो क्या पतिव्रता स्त्रियोंकी पूजा करके पुरुषोंको सन्तोष मान लेना चाहिए अथवा स्वयं पत्नीव्रतका दृढ़तापूर्वक पालन करते हुए ही पतिव्रता स्त्रियोंको सम्मान देना चाहिए? अनुसरण करनेसे अच्छी पूजा क्या हो सकती है? अथवा जहाँ अनुसरणका तनिक भी विचार न हो वहां शाब्दिक पूजाकी क्या कीमत मानी जा सकती है? पिछले पाँच वर्षोंसे में भारतमें हूँ और मुझे भारतीय जीवनके प्रत्येक क्षेत्रका अच्छा अनुभव मिल रहा है। सामान्य- तया चरित्रवान माने जानेवाले, अपनी पत्नीपर बड़ा स्नेहभाव रखनेवाले युवकोंको मैंने विधुर होनेके तुरन्त बाद ही सगाई और विवाह करते हुए देखा है। इससे मुझे अत्यन्त खेद हुआ है। यदि हम अमुक रिवाजके गुलाम न बन गये हों तो विधुर पुरुषका श्मशानसे घर पहुँचते-पहुँचते विवाहका विचार करना हृदयको कँपा देनेवाली बात


१. महाराष्ट्रको प्रसिद्ध समाज-सुधारक; न्यायमूर्ति महादेव गोविन्द रानडेकी धर्मपत्नी; श्री रानडेका स्वर्गवास १९०१ में हुआ था।