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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकेगी तथा उद्योगको कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा। इससे उन्होंने तथा उनके समान मत रखनेवालोंने एक पंचनामा तैयार किया और उसपर हस्ताक्षर किये गये।

श्री मंगलदासको लगा कि मालिकों और मजदूरोंके झगड़ेके बीच यदि कोई न पड़े तो ज्यादा अच्छा होगा; इसीमें दोनोंकी शोभा है। मतभेद हो तो दोनों आपसमें मिल-जुलकर समझ लें; उन्होंने ऐसा करनेका प्रयत्न भी किया। उन्हें भारी आशंका इस बात की है कि मजदूर दिन-प्रतिदिन मालिकों के विरुद्ध होते जा रहे हैं तथा अनु अंकुश---में नहीं रहते हैं। यदि ऐसा होगा तो उद्योगको हानि पहुँचेगी। इसलिए मजदूरोंको मालिकों के साथ ही सीधी वार्ता करके न्याय प्राप्त करनेकी तालीम मिलनी चाहिए। इस पद्धतिसे उन्होंने कुछ झगड़ोंको निपटाया भी है। लेकिन थ्रॉसल विभागके सम्बन्धमें उन्होंने अन्ततः पंच नियुक्त किये जानेके तत्त्वको कुछ हदतक स्वीकार कर लिया है। यह निश्चय किया गया कि वे तथा मैं जो निर्णय देंगे उसे सब कोई स्वीकार करेंगे।

यह होनेपर भी श्री अम्बालालका पंचनामा कायम रहा और वह इस शर्तपर कि यदि मंगलदास द्वारा रखे गये प्रस्ताव के अनुरूप निर्णय हो जाये तो श्री अम्बालालके पक्षके लोगोंको उसे स्वीकार करना होगा। २५ अप्रैलतक श्री मंगलदास तथा में परस्पर सहमत न हो सके।' श्री अम्बालालको चूँकि विलायतके लिए रवाना होना था इसलिए उन्होंने अपनी हदतक तो मजदूरी निश्चित कर लेनेका निर्णय किया और मजदूरोंके प्रतिनिधियोंके साथ परामर्श करने के बाद दर निश्चित कर दी गई। श्री मंगलदासको इन दरोंकी बात मालूम हुई, इसके बाद हमारे बीच बातचीत हुई लेकिन मैं तथा श्री मंगलदास एकमतसे कोई निर्णय न दे सके।परिणामस्वरूप श्री अम्बा- लालके पक्षकी बारह मिलोंको छोड़कर बाकी सब मिलोंमें ९ तारीख से हड़ताल शुरू हुई। यदि मजदूर श्री अम्बालालके पक्ष द्वारा निर्धारित दरोंसे कुछ कम लेनेके लिये तैयार हो जाते तो समाधान होना सम्भव था। लेकिन श्री अम्बालालक्के पक्ष द्वारा निर्धारित दरें भी पर्याप्त नहीं हैं---मजदूरोंकी ऐसी मान्यता होनेके कारण वे उससे कम दरोंको स्वीकार न कर सके । अन्ततः यह विवाद उन्होंने सरपंचको सौंपना मंजूर किया। लेकिन हम ऐसे सरपंचको ढूंढ़ निकालने में असमर्थ रहे जो मुझे तथा श्री मंगलदास दोनोंको ही मान्य होता, और इस कारण हड़ताल शुरू हो गई।

मेरी तो सिर्फ यह इच्छा है कि हड़ताल होनेपर मजदूरोंमें भी पूर्णतः शान्ति रहे, मालिक भी शान्तिपूर्वक तथा सोच-समझकर उचित कदम उठायें और अन्तमें दोनोंको न्याय ही मिले। मजदूरोंकी माँग उचित है या नहीं, उन्होंने अपने व्यवहारमें भूल की है अथवा नहीं, श्री अम्बालालने पंच नियुक्त करनेका जो निर्णय किया है वह सही है या नहीं, श्री मंगलदासके पक्षके लोगोंका थोड़ेसे पैसोंके पीछे लड़ने में कुछ सिद्धान्त है या नहीं, दोनों पक्षोंसे सम्बन्ध बनाये रखनेकी मेरी बात उचित थी अथवा नहीं; इस समय ऐसे प्रश्नोंका उत्तर देनेकी हम कोई आवश्यकता नहीं समझते। फिलहाल तो में

१. गांधीजीने २४ अप्रैलको मिल-मालिकोंसे बातचीत की थी।