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१८७. उड़ीसामें अकाल

गत रविवारके 'नवजीवन में उड़ीसाके अकालके सम्बन्धमें मैंने कुछ बातें लिखी थीं। उसमें मैंने भाई अमृतलाल ठक्करसे पत्र पानेकी आशा व्यक्त की थी। वह पत्र आ गया है और नीचे दिया जा रहा है।

प्राथमिक जाँचमें जो दृष्टिगोचर हुआ है, पत्रमें वही लिखता हूँ। वहाँके कष्टोंकी ठीक जानकारी तो बाद में होगी। इस बीच हमारा क्या कर्त्तव्य है, यह बात स्पष्ट है। अकालसे, बिना किसी अपरावके, जहाँ एक भी व्यक्ति भूखा मरे वहीं दूसरोंको शान्तिसे खानेका अधिकार नहीं हो सकता। अतएव मुझे उम्मीद है कि जिनसे जितनी बन सकेगी वे उतनी मदद करेंगे। उड़ीसाकी स्थिति ऐसी नहीं है कि वहाँके लोग आपत्तिके समय स्वयं अपनी मदद कर सकें। अबतक दूसरे स्थान से इन लोगोंको मदद नहीं मिली। चूँकि हमें इनके कष्टका समाचार मिल गया है इसलिए उनकी मदद करना हमारा कर्तव्य है। अहमदाबादमें गुजरात सभाने इस कामको हाथमें ले लिया है और उसने लोगोंसे चन्दा लेना भी आरम्भ कर दिया है। जो रकम प्राप्त होगी उसकी रसीद दी जायेगी तथा श्री अमृतलाल ठक्करकी ओरसे जो हिसाब मिलेगा उसे भी प्रकाशित किया जायेगा।

मोहनदास करमचन्द गांधी

[गुजराती]

नवजीवन, १६-५-१९२०

१८८. अहमदाबादके मिल-मालिक और मजदूर

उम्मीद तो यह थी कि मालिकों और मजदूरोंके [आपसी] मतभेदके सम्ब- न्धमें मुझे कुछ भी नहीं लिखना पड़ेगा। लेकिन जब हजारों व्यक्ति काम करना बन्द कर दें तब मेरे विचारसे एक पत्रकारके रूपमें मैं उसे पाठकोंके सम्मुख प्रस्तुत करनेके लिए बँधा हुआ हूँ।' अनेक प्रसंग ऐसे होते हैं कि समाचारपत्रोंमें उनकी चर्चा करनेसे यथार्थ परिणामपर पहुँचनेमें विघ्न पड़ता है। लेकिन जब कोई विषय चर्चाका ही विषय बन जाये तब पत्रकारका यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह उसके सही स्वरूपको जनता के

१. यह उद्धृत नहीं किया जा रहा है । पत्रके सारके लिए देखिए उदोसामें संकट”, १२-५-१९२० j

२. ३१ मार्चको गांधीजीने मिल-मालिकोंको पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने उनसे मजदूरोंको कुछ रियायतें दिये जानेका अनुरोध किया था।