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१८६. खादी इस्तेमाल करनेवालोंसे

पाठक यह जानकर खुश होंगे कि खादीका वह सारा माल जो सत्याग्रह आश्रम- में इकट्ठा हो गया था, बिक चुका है। शुद्ध स्वदेशी भण्डारके श्री नारणदास पुरुषोत्तम- दास और श्री विठ्ठलदास जेराजाणीने दस हजार रुपयेकी खादी तथा अन्य वस्तुएँ खरीदी हैं और पंजाब, सिन्ध आदि प्रान्तोंसे खादीकी माँग होनी शुरू हो गई है। इससे जिन-जिन केन्द्रोंको खादी भेजनेकी मनाही कर दी थी उन-उन केन्द्रोंसे, फिरसे खादी आनी शुरू हो गई है। खादी मँगानेवाले खादीके नमूने तथा भावके विषयमें पूछते रहते हैं, लेकिन फिलहाल हम ये दोनों काम करते रहने जैसी स्थितिमें नहीं हैं। इतना याद रखना चाहिए कि हाथसे कातनेकी क्रिया तो पिछले एक वर्षसे ही फिरसे आरम्भ हुई है। इस कारण जो सैकड़ों स्त्रिय खाली बैठी रहती थीं अब काम में लग गई हैं और थोड़ा-बहुत पैसा कमाने लगी हैं। जिन सैकड़ों बुनकरोंने, अपना बुनाईका धन्धा छोड़ दिया था, फिर उसे शुरू किया है। हाथका कता सूत फिलहाल तो मोटा-पतला होता है और खादी में गुण या प्रकारकी समानता नहीं होती। इसके अतिरिक्त प्रत्येक स्थानपर बुनकरोंको एक-सी मजदूरी नहीं दी जाती। जहाँ उन्हें कम मजदूरी नहीं पुसाती वहाँ अधिक मजदूरी भी दी जाती है। धीरे-धीरे खादीके पनहे, प्रकार तथा भाव हम एक निश्चित स्तरपर पहुँच जायेंगे और यदि हम खादीकी उपयोगिता तथा पवित्रताकी कद्र करना सीख सकें तो थोड़े ही समय में लाखों रुपयेकी खादी तैयार करवा सकेंगे और लाखों रुपयोंको गरीबोंके घर भेज सकेंगे। इस बीच खादीका उपयोग करनेवालों को फिलहाल जैसी ख़ादी मिले उसीसे सन्तोष करना चाहिए। सिर्फ इतना ही आश्वासन दिया जा सकता है कि इस खादीमें रुईके दाम तथा उसकी खादी बनवानेके मेहनतानेके सिवाय कुछ और नहीं जोड़ा जायेगा। यदि हम खादीके टिकाऊपनपर विचार करें तो ऐसा एक भी वस्त्र दिखाई नहीं देगा जो उसकी होड़ कर सके।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १६-५-१९२०



१. देखिए “ खदरका उपयोग ", २८-४-१९२०।