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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह कह देना चाहता हूँ कि अगर मतदाता राष्ट्रकी किसी प्रवृत्तिमें भाग न ले, राष्ट्रमें क्या-क्या हो रहा है इसका उसे पता न हो, वह विचारहीन हो और अपना वोट उसे दे जो उसके नातेदार हों या जिनसे उसका कोई निजी स्वार्थ हल होता हो या वह जिनकी मददका भूखा हो तो उससे हिन्दुस्तानका हित होनेके बदले अहित ही होगा।

अब मानिये कि प्रत्याशीसे क्या प्रश्न पूछे जायें यह तय हो गया; वे प्रश्न उससे पूछ भी लिये गये । पर यदि इसके बाद हमें ऐसा लगे कि उनसे प्राप्त उत्तरोंका ढंग सन्तोषजनक नहीं है या वे उत्तर ही सन्तोषप्रद नहीं हैं, या यह कि उत्तर तो सन्तोषजनक मिले परन्तु प्रत्याशी चारित्र्यवान् व्यक्ति नहीं है तो हमें क्या करना चाहिए। जहाँ मत देनेकी प्रथा बहुत समयसे प्रचलित है वहाँ मतदाता उपयुक्त प्रत्याशीके नजर न आने- पर अपने अधिकारका उपयोग किसीको मत न देकर करता है। जहाँ कोई उपयुक्त प्रकारका प्रत्याशी नहीं दीख पड़ रहा है वहीं “अन्धोंमें काने राजा " की मजबूरीको स्वीकार करना ठीक नहीं है। हम ऐसी अवस्था में किसीको भी अपना वोट न देकर चुनावको पूरी तरह प्रभावित कर सकते हैं। शायद कोई यह शंका उठाये कि ऐसे में मत न देनेवाले व्यक्ति बैठे रह जायेंगे तो इधर-उधरके अवांछित तत्त्व अपना उल्लू सीधा कर लेंगे और धारासभाके सदस्य बन जायेंगे। यह बात कुछ अंशतक ठीक है। परन्तु कल्पना कीजिए कि किसी ग्राममें जितने उम्मीदवार खड़े हुए हैं वे सबके सब शराबी हैं, इसलिए समझदार मतदाता उन्हें अपना मत नहीं देते और उनमें से कोई एक प्रत्याशी अपने ही जैसे लोगोंसे वोट लेकर कौंसिलों में पहुँच जाता है तो क्या उसका धारासभामें कोई वजन पड़ेगा। इसमें सन्देह नहीं कि गिनतीकी हदतक उस प्रतिनिधिके वोटका महत्त्व है, परन्तु धारासभा में उसके भाषणों तथा उसके विचारों- का कोई भी प्रभाव पड़नेवाला नहीं है। इतना ही नहीं, अगर एक बार मतदाता अपनी पसन्दका प्रत्याशी न पाकर वोट नहीं देते तो दूसरे अवसरपर उचित कदम उठा- कर योग्य प्रत्याशीको ढूंढ़कर खड़ा भी करेंगे और इस प्रकार अपने ग्राम या नगरका मस्तक ऊँचा करेंगे। जिस देश में राष्ट्रीय जीवन प्रगतिशील है वहाँ लोग प्रत्येक प्रवृत्ति- को समझते-बूझते हैं और अपने आसपासके वातावरणको शुद्ध बनाने और उसे शुद्ध बनाये रखनेका भरसक प्रयत्न करते रहते हैं। सभी ज्ञानवान और विचारशील मतदाता देखेंगे कि उनके सामने कभी-न-कभी ऐसे अवसर अवश्य आयेंगे कि जब उन्हें अपना वोट देने से इनकार करना पड़ेगा। इसलिए आशा है कि जब उपयुक्त प्रकारका प्रत्याशी न दिखे तब मतदाता निर्भयतापूर्वक अपना मत देने से इनकार कर दें। और यदि वोट देना ही है तो अमुक प्रत्याशी किस पक्षका है इसका खयाल किये बिना, सबसे अच्छे व्यक्तिको वोट दें।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १६-५-१९२०

१. गुजराती में 'मामा न होनेसे काना मामा ही अच्छा'।