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मजदूरोंकी स्थिति


आज इनमें से एक भी शर्तका पालन नहीं किया जाता। इसमें दोनों पक्षोंका दोष है। मालिक सिर्फ मजदूरीसे सम्बन्ध रखते हैं। मजदूरोंका क्या होता है, इससे उन्हें कोई मतलब नहीं। सामान्यत: उनका सारा प्रयत्न कमसे-कम वेतन देकर अधिकसे-अधिक काम लेनेका होता है। [दूसरी ओर] मजदूर ऐसी युक्तियाँ रचते रहते है कि अधिकसे-अधिक वेतन लेकर कमसे-कम काम किस तरह किया जाये।

परिणाम यह है कि मजदूरोंके वेतनमें वृद्धि होती है फिर भी काममें सुधार नहीं होता। दोनोंके बीचके सम्बन्ध निर्मल नहीं होते, और मजदूर अपनी वेतन-वृद्धिका सदुपयोग नहीं करते।

इन दोनों पक्षोंके बीच तीसरा पक्ष उठ खड़ा हुआ है। वह मजदूरोंका मित्र बन गया है। इस पक्षकी जरूरत है। उसमें जिस हदतक मैत्री-भावना है, केवल परमार्थकी दृष्टि है, उस हदतक ही वह मजदूरोंका मित्र बन सकता है।

अब ऐसा समय आ रहा है जब मजदूरोंको कई तरहसे गोटीकी तरह इस्तेमाल करनेका प्रयत्न किया जायेगा। इस स्थितिपर राजनैतिक क्षेत्रमें भाग लेनेवाले व्यक्तियोंको विचार करना चाहिए। वे क्या करेंगे? अपना स्वार्थ देखेंगे अथवा मजदूरोंकी और कौमकी सेवा करेंगे? मजदूरको मित्रोंकी आवश्यकता है। मजदूर सहारेके बिना आगे नहीं बढ़ सकते। ये सहारा देनेवाले लोग कैसे हैं, इसपर मजदूरोंकी स्थितिका दारोमदार होगा।

काम बन्द करना, 'स्ट्राइक' तथा हड़ताल करना--ये चमत्कारी वस्तुएँ हैं लेकिन इनका दुरुपयोग करना कठिन नहीं है।[१] मजदूरोंको मजबूत यूनियनोंसंघोंकी स्थापना करनी चाहिए और संघकी अनुमतिके बिना हड़ताल नहीं की जानी चाहिए। हड़ताल करने से पहले मालिकोंके साथ सलाह-मशविरा भी करना चाहिए। यदि मालिक पंच नियुक्त करें तो पंचायतके सिद्धान्तको स्वीकार करना चाहिए और पंचकी नियुक्ति होनेपर उसका निर्णय दोनोंको, पसंद आये या न आये, स्वीकार करना चाहिए।

'नवजीवन' के पाठको! आप यदि मजदूरोंकी स्थिति सुधारने में दिलचस्पी लेते हों, मजदूरोंके मित्र बनना चाहते हों, उनकी सेवा करना चाहते हो तो आप उपर्युक्त विचारोंको पढ़कर समझ सकेंगे कि आपके सामने एक ही राजमार्ग है-दोनों पक्षोंके बीच कौटुम्बिक सौहार्द पैदा करके मजदूरोंको ऊँचा उठाना। वैसा करने के लिए सत्याचरणके समान अन्य कोई सीधा रास्ता नहीं है। मजदूरोंको अधिक वेतन मिले, केवल इससे ही आपको सन्तोष नहीं होना चाहिए। आपको इस बातकी भी जांच करनी चाहिए कि वे किन साधनोंके द्वारा अधिक वेतन पाते हैं, और उसका क्या उपयोग करते हैं।

[गुजरातीसे]
नवजीवन,८-२-१९२०
  1. १९२० में भारतमें २०० हड़ताले हुई। इंडिया इन १९२०, अध्याय ५।