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मतदाता क्या करें ?

महत्वपूर्ण बात यह जान लेनी है कि उस प्रत्याशीका चरित्र कैसा है; चारित्र्यवान् व्यक्ति जहाँ कहीं होगा, हमारा हितसाधन ही करेगा। उसकी भूलें भी सह्य होंगी। चारित्र्यहीन व्यक्तिके द्वारा उच्च कोटिकी सेवा की जा सकती है, इसे में असम्भव मानता हूँ। अर्थात् यदि मुझे मतदान करना हो तो में पहले यह देखूंगा कि उम्मीदवारोंमें से सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार कौन है, और उसके बाद यह जानने की कोशिश करूँगा कि जिन साधनोंके द्वारा देशकी उन्नति शीघ्रसे-शीघ्र की जा सकती है, वे साधन उसे प्रिय हैं या नहीं। इस हेतु मैं उनसे पूछना चाहूँगा:

१. क्या आप स्वदेशीसे सम्बन्धित वर्तमान हलचलको पसन्द करते हैं? यदि ऐसी बात है तो क्या आप विदेशी कपड़ेपर भारी कर लगवाने के लिए तैयार हैं? स्वदेशमें बना कपड़ा सस्ता करनेके लिए जिन-जिन वस्तुओंकी आवश्यकता होगी उनको सस्ते दामों उपलब्ध कराने की दिशा में क्या आप कानून बनाने के लिए तत्पर रहेंगे?

२. क्या आप मानते हैं कि विभिन्न प्रान्तोंका कामकाज उनकी प्रान्तीय भाषाओं में ही चलाया जाना चाहिए और राष्ट्रका काम राष्ट्रीय भाषा हिन्दुस्तानी–– अर्थात् हिन्दी उर्दू के मिले-जुले स्वरूप में चलना चाहिए ? यदि आप ऐसा मानते हैं तो क्या आप यथासम्भव प्रान्तका काम उसकी धारासभामें उसीकी भाषामें चलाने तथा राष्ट्रका कामकाज राष्ट्रभाषामें चलानेके लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहेंगे?

३. जब अंग्रेजी राज्यकी नींव यहाँ पड़ी ही थी तब अंग्रेजी अमलदारोंने जनताकी सुविधाकी अपेक्षा शासन कार्य चलानेकी सहूलियतका अधिक खयाल रखते हुए भाषाके आधारपर सूबे बनाने के बजाय अमलदारोंकी सुविधाको सामने रखकर प्रान्त बनाये थे । क्या आप मानते हैं कि उससे देशकी बहुत क्षति हुई है? यदि हाँ, तो क्या आप भारतके सूबका नये सिरेसे भाषाके आधारपर शीघ्रातिशीघ्र विभाजन करनेका प्रयत्न करेंगे?

४. क्या आप यह मानते हैं कि हिन्दुस्तानकी उन्नति हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीच एकता स्थापित हुए बिना असम्भव है? यदि आप यह मानते हैं और अगर आप हिन्दू हैं तो क्या खिलाफतके प्रश्नके सम्बन्ध में आप यथासम्भव सहायता करने को तैयार हैं?

इस प्रकार में ये चार प्रश्न तो उस प्रत्याशीसे जरूर पूछूंगा; और सन्तोषजनक उत्तर प्राप्त होनेपर ही मैं उसे अपना वोट देनेको तैयार होऊँगा। ये चार प्रश्न मुझे महत्त्वपूर्ण और बहुत वजनदार लगते हैं, इसलिए मैं इन प्रश्नों के उत्तर जानना चाहूँगा । कोई अन्य मतदाता इन चार प्रश्नों में से किसी प्रश्नको पूछना आवश्यक न समझे तो वह भले न पूछे। उसे यदि और कोई प्रश्न अधिक महत्त्वपूर्ण जान पड़े तो वही प्रश्न पूछे। कौन-कौन से प्रश्न पूछे जायें यह कोई जरूरी बात नहीं है कि अमुक प्रश्न ही पूछे जायें; जरूरी यह है कि भारतकी उन्नतिके लिए हमने जिन-जिन बातोंकी आव- श्यकता माती हो उन-उन बातोंको वह वहाँ पहुँचकर करेगा या नहीं सो जान लिया जाये। इन प्रश्नोंका जिक्र में यहाँ यह बताने के लिए कर रहा हूँ कि आज हिन्दुस्तानके मतदातामें तटस्थता, स्वतन्त्रता, प्रमाणिकता और बुद्धिमत्ताका होना आवश्यक है। मैं