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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हिन्दुस्तान में ही अनेक स्थानोंपर लोग हिंसात्मक कार्य करते हैं। यदि हम उनतक पहुँच जायें और प्रयत्न करें तो उन्हें ऐसा करनेसे रोक सकते हैं। तथापि हम वहाँ नहीं जाते और न प्रयत्न ही करते हैं। यह हमारी ताकतसे बाहर है। कितनी बार ऐसा होता है कि हम एक बुरे कार्यको अपेक्षाकृत कम बुरे कार्यसे रोक सकते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अपेक्षाकृत कम बुरा कार्य करना हमारा कर्त्तव्य हो जाता है। अतएव हमें असहकारकी जाँच दो तरहसे करनी होगी। असहकार आपत्ति- जनक हथियार है या नहीं, इस बातका उत्तर तो मैंने अनेक बार दिया है। असहकार आपत्तिजनक हथियार नहीं है; इतना ही नहीं बल्कि अमुक अवसरपर असहकार करना हमारा धर्म हो जाता है। वस्तुतः असहकारमें कोई दोष नहीं है।

इसलिए अब प्रस्तुत अवसरपर हमें इस शस्त्रका उपयोग करना चाहिए अथवा नहीं, इस बातपर हमें विचार करना है। दूसरे शब्दोंमें कहें तो हिन्दुओंको इस हदतक मुसलमानोंकी मदद करनी चाहिए या नहीं? खिलाफतके मामलेमें मुसलमान न्यायपर हैं, इस बातको सत्र स्वीकार करते हैं। मुसलमानोंके दुःखमें भाग लेना हिन्दुओंका स्पष्ट कर्त्तव्य है। मुसलमानोंके पास असहकारके सिवा दूसरा अस्त्र नहीं है। तब क्या मुसलमानोंके इस दुःखके समय हिन्दू तटस्थ बैठे रह सकते हैं? मेरी नम्र रायके अनुसार हिन्दू असहकार [ आन्दोलनमें भाग लेने] के लिए बँधे हुए हैं।

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, १६-५-१९२०


१८५. मतदाता क्या करें ?

जो लोग आजतक धारासभा सदस्योंको चुनकर भेजनेसे असम्बन्धित थे, जिन्हें उक्त चुनावों में मतदान करनेका हक प्राप्त नहीं था वे सब अब मतदाताओंकी श्रेणी में आं जायेंगे, इतना ही नहीं, जिनको वे मत देकर भेजेंगे उन सदस्योंके अधिकार अपेक्षा- कृत अधिक होंगे। इस तरह मतदाताओंका उत्तरदायित्व भी बढ़ गया है। पहले जिन बड़े नगरों या कस्बोंकी नगरपालिकाओंके सदस्योंको चुननेका अधिकार लोगोंको दिया गया था, वहाँ उस मतदानका उपयोग सावधानीसे किया गया हो, ऐसा देखने में नहीं आया। मतदाताओंने सदस्योंकी योग्यता देखने के स्थानपर अपने निजी सम्बन्ध- का खयाल रखा। यदि हमने धारासभाओंके चुनावके प्रारम्भिक अवसरपर ही इस प्रवृत्तिका परित्याग कर दिया तो एक ठीक परम्परा पड़ जायेगी और मतदाता भवि- ष्य में उसी ढर्रेको पकड़े रहेंगे। यदि हम धारासभाओंका सदुपयोग करना चाहते हैं तो हमें इसी मार्गका अनुसरण करना होगा। मैं तो यहांतक मानता हूँ कि किसी भी मत- दाताको पक्षोंके झगड़े में न पड़ना चाहिए। अमुक प्रत्याशी किस पक्षका है यह बात जाननेके बजाय यह जानना चाहिए कि उसके विचार क्या हैं। और उससे भी अधिक

१. १९१९ के सुधार अधिनियमके अन्तर्गत।