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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बनना हो तो बनो। लेकिन तुम्हारी तो हमेशा ही कलम बने रहने की इच्छा जान पड़ती है ? क्या मुझे उसकी भी तृप्ति करनी चाहिए? अगर मैं वैसा न करूँ तो तुमने मुझमें जिन गुणोंकी कल्पना की है क्या मुझे उनसे रहित मानोगे ? 'कुत्तेको मारना हो तो उसे बदनाम कर दो', व्यक्तिको नीचे गिरानेका एक सुन्दर रास्ता यह है उसमें गुणोंका आरोप करो। लेकिन मुझे गिरना ही नहीं है। मैं तो जहाँ था वहीं हूँ। इसलिए होशियार रहो। जब-जब तुम्हें मेरे पत्रकी भूख होगी तब-तब वे तुम्हें मिलते रहेंगे। लेकिन इसके बाद 'आक' अथवा 'कबीर बड़'का काम कौन करेगा ? छोटे-से घड़ेको तो हमेशा ही भरना पड़ता है लेकिन समुद्रको भरनेकी जरूरत कब पड़ती है।

बात तो सच्ची ही है। चूँकि तुम अब भी कमजोर हो इसलिए सब-कुछ मुझपर छोड़ना ही ठीक है। पोलकसे में कहा करता था कि उनकी दो पत्नियाँ हैं। एक श्रीमती पोलक और दूसरी में। कारण, हम दोनोंके आगे ही वे अपना हृदय खोलते थे; हम दोनोसे ही रूठते थे। तुम्हें भी पोलक-जैसी आदत पड़ गई जान पड़ती है। लेकिन दुर्गा क्या कहेगी?

शौकत अली आज आ पहुँचे हैं। उनके साहसमें कोई कमी नहीं है। इसके अतिरिक्त डच गियानासे त्रिमूर्ति आई है, इसलिए आज मुझे सांस लेनेकी भी फुरसत नहीं है। सवेरे ललुभाई और ब्रेलवी आये थे, उनके साथ राष्ट्रीय भाषापर अच्छा और मधुर संलाप हुआ। उन्होंने उड़ीसाके लिए दो सौ रुपये भेजे हैं। अगर इंग्लैंड जाना हुआ तब भी एक मासके बाद ही होगा।

तुमने मेवा खाकर ठीक ही किया। यह क्या कोई मेरे अकेलेके खानेके लिए था? वह मेरे लिए था और उन सबके लिए भी जो मेरे हैं। हरिभाऊको' भेजा, यह तुम्हारा 'कबीर बड़ 'पन है। तारके पैसे खर्च न करना उसीका दूसरा, और मेरी अनुमति होनेके बावजूद तुम्हारा बेलगाँव न जाना तीसरा उदाहरण है। अब आनन्दानन्द वहाँ आ रहा है, इसलिए तुम्हारे जानेकी जरूरत नहीं रही। ३० तारीखको तो मुझे काशी जाना ही पड़ेगा।

मगनलाल और राधा' आज यात्रापर गये हैं। सिंहगढ़ जायेंगे ऐसा मानता हूँ । मैंने उन्हें यही सलाह दी है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११४०९) की फोटो-नकलसे।

१. सर ललुभाई सामलदास मेहता, बम्बईके सुप्रसिद्ध नागरिक, उदार दलीय राजनीतिसे सम्बद्ध।

२. एस० ए० बेलवी, राष्ट्रवादी मुस्लिम पत्रकार, उन दिनों बॉम्बे क्रॉनिकलके सम्पादकीय विभागसे सम्बद्ध।

३. श्री हरिभाऊ उपाध्याय, हिन्दी नवजवीनके सम्पादक।

४. गांधीजी अ० भा० कांग्रेस कमेटीके अधिवेशन में भाग लेनेके लिए ३० मईको बनारस पहुँचे थे।

५. मगनलाल गांधीकी पुत्री ।