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पत्र: महादेव देसाईको


लड़कियोंसे कह दीजिये कि उनकी सगाईसे मुझे प्रसन्नता तभी होगी जब वे अपने भावी पतियोंको भी इस महान् कार्यमें योग देनेके लिए ले आयेंगी। लेकिन यहाँ में भूल ही गया था कि आप सब तो उसी बदनाम --या नेकनाम ---तैयब परि- वारके वातावरण में रहते हैं, इसलिए किसीको लानेका सवाल ही नहीं रह जाता - आप सब तो स्वयं उसमें शामिल हैं ही । ईश्वर करे ये लड़कियाँ अपने पतियोंके साथ अपने महान् परिवारको, और जिस देशको यह परिवार विभूषित कर रहा है, उस देशके गौरवको बढ़ायें। लेकिन हाँ, आपके लौटनेपर में अपने सूतकी मांग जरूर करूंगा।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ९५९४) की नकलसे।


१८३. पत्र : महादेव देसाईको

[ वैशाख ] बदी १२ [ १५ मई, १९२० ]

भाईश्री महादेव,

आज तुम्हारे दो पत्र मिले। तुमने जो उलाहना दिया है, वह मुझे अच्छा लगा क्योंकि इससे मेरे प्रति तुम्हारे प्रेम-भावका पता लगता है।

मैं तो हमेशा तुम्हारी कुशल-क्षेम पूछता रहा हूँ। हमेशा आनन्दानन्दसे पत्र लिख- वाता रहा हूँ और हमेशा तुम्हारे पत्रके न आनेपर शिकायत की है। अभी पिछले तीन दिनोंसे ही मुझे तुम्हारे पत्र प्राप्त होने लगे हैं।

लेकिन अपना एक दोष मुझे स्वीकार करना ही होगा। मेरे उस दोषको कैलेन- बैकने ठीक पकड़ा था और उसके लिए उन्होंने मुझे काफी डाँटा-फटकारा भी था । में अपने व्यवहारसे ऐसा आभास देता मालूम होता हूँ कि जिसकी कसौटी हो चुकी हो और जो खरा पाया गया हो उसे मैं भूल जाता हूँ। उसे क्या पत्र लिखना और क्या 'गुड नाइट' कहना ? जो प्रेम औपचारिकताको अपेक्षा करे उसे क्या प्रेम कहा जा सकता है ? उसे पत्र न लिखूँ तो क्या वह मुझे गलत समझेगा ? आकके पौधेको भला कोई क्यों सींचेगा ? लेकिन आमकी एक कलम लगानी हो और उसे दो दिन पानी न दिया जाये, उसके आसपास बाड़ न बाँधी जाये तो क्या हो ? एस्थरकी मैंने आमके भव्य रूपमें कल्पना की है और तुम्हें 'कबीर बड़" माना है। तुम्हें भी हापुस आमकी कलम

१. पत्र में शौकत अलोकेआने की जो चर्चा है उसके आधारपर इस पत्रकी तारीख निश्चित की गई है। गांधीजीने उन्हें बम्बईसे अहमदाबाद जानेके लिए कहा था; देखिए “पत्र : महादेव देसाईको ", १३-५-१९२० ।

२. साधन-सूत्र में यहाँ कुछ शब्द अस्पष्ट हैं।

३. गुजरात में प्रसिद्ध बरगदका एक पुराना और विशाल वृक्ष ।