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१८१. पत्र: मथुरादास त्रिकमजीको

१३ मई, १९२०

संलग्न पत्रको पढ़ने के बाद लिफाफेमें रखकर खुला हुआ ही भाई शौकत अली- को देना।

[गुजरातीसे]

बापुनी प्रसादी

१८२. पत्र : अब्बास तैयबजीको

आश्रम

मई १३, [ १९२० ]

प्रिय भाई, आपका उल्लासपूर्ण पत्र मिला। पढ़कर बड़ी खुशी हुई। मैं सचमुच इस बात से बहुत प्रसन्न हूँ कि अब आप और अधिक देश-कार्य करनेकी मनःस्थिति में हैं। आप मुझे बधाई देते हैं, लेकिन गलत बातके लिए। अगर मैं बधाईका पात्र हूँ तो इसलिए कि आपको एकान्तवाससे खींचकर कर्म-क्षेत्रमें ले आया और उससे भी अधिक इसलिए कि आप उन दिनों जिस अवसादपूर्ण और खिन्न मनःस्थिति में थे, उसके बावजूद आपको लाहौर में बनाये रखा। आप नहीं जानते कि यदि में आपको वहाँ नहीं रोक रखता तो हमारा कितना बड़ा नुकसान होता। और उस बधाईमें श्रीमती अब्बास और आपकी सुयोग्य पुत्रियोंका भी हिस्सा है, जिन्होंने आपको उत्साहित करके लाहौर भेजा और वहाँ रहनेकी प्रेरणा दी। तो इस तरह मैं इस बधाईके चौथाई हिस्सेका ही हकदार हूँ और सो भी अगर उन सबको मंजूर हो तो। एक बात यह भी है कि अगर आपने खुशी-खुशी मेरी बात मान न ली होती तो भी में इस बधाईकी पात्रता प्राप्त नहीं कर सकता था। इसलिए मेरा खयाल है आप भी इस चौथाईमें हिस्सा बँटायेंगे या अब चूंकि आप फिर चुटकी बजाकर अपनी चिन्ता फुर्र कर देनेको मनःस्थितिमें हैं इसलिए पूराका-पूरा चौथाई हिस्सा स्वयं हड़पने के लिए झगड़ा करेंगे।

१. शौकतअलीको लिखा गया यह पत्र, जो उस समय बम्बई में थे, उपलब्ध नहीं है । यह पत्र मथुरादास त्रिकमजीकी मार्फत बम्बई भेजा गया था, क्योंकि गांधीजीके पत्र शौकत अलीको समयपर नहीं मिला करते थे। सम्भवतः ये सरकार द्वारा सेंसर किये जाते थे ।

२. गांधीजी और अब्बास तैयबजी कांग्रेस-जाँच समितिके कामके सिलसिलेमें १९२० के प्रारम्भमें पंजाबमें थे । इसलिए पत्रमें लाहौरके उल्लेखते सिद्ध होता है कि यह १९२० में दी लिखा गया होगा।