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पत्र : महादेव देसाईको

शान्तिको क्या कहींसे खरीदा जा सकता है? महलके ठाठ-बाटमें रहता हुआ राजा अशान्त हो सकता है और महाव्यथासे पीड़ित जॉब-जैसे व्यक्तिको शान्ति मिल सकती है। बनियनको जेलमें क्या कम शान्ति थी? और रोग शय्यापर पड़े-पड़े क्या तुम भी शान्तिका अनुभव नहीं कर रहे थे? अगर जीव [अनित्य वस्तुओंके पीछे] निरर्थक भाग-दौड़ न किया करे तो वह शान्ति प्राप्त कर सकता है। यह निरर्थक भाग-दौड़ तो मंगलदास-तक' करते हैं जब कि कितने ही मजदूर शान्तिका उपभोग करते हैं। तुम्हारा शरीर चलता रहे और तुम काम करते रहो तब भी क्या और अगर न चले तथा तुम काम न कर सको तब भी क्या? तुम्हारे लिए इतना ही काफी है कि तुम उसकी गति न रोको और उसे स्वयं स्वस्थ बनाये रखने के लिए आवश्यक उपाय करते रहो। 'मन एव मनुष्याणां ' इस सूक्तिमें कितना जोर है यह कौन जानता है ? हमेशा सुननेसे क्या उसमें निहित सत्य कम हो जाता है? और अगर उसके सत्यको तुम स्वीकार करते हो तो मन-ही-मन बराबर इसे दुहराते हुए तुम अपने शोक, अपनी ग्लानि, अपनी निराशा और उद्वेलित भावनाओंका शमन कर डालो।

यह रहा वाइसरायका पत्र । ऐसा लगता है कि अब मुझे जाना ही चाहिए । मुझे अर्थात् हमें। मैंने शौकत अलीको लिखा है। वे बम्बईमें है। मैंने उन्हें यहाँ बुलाया है। उसके बाद निश्चय होगा - तुम तनिक भी विह्वल न होना - परम शान्तिसे रहना । जो होना होगा सो होगा । तुम्हारी चिन्ता, तुम्हारी पोशाक आदिके बारेमें मुझे ही तो विचार करना है। इसलिए जब तुम्हें चलनेके लिए कहूँ तब चलना । मुझे उतावली नहीं है क्योंकि मैं तो हार बैठा हूँ।

एस्थरको प्रसन्न रखना और स्वयं भी प्रसन्न रहना। खूब सेहत बनाना, तभी बाकी सब काम कर सकोगे।

कल खिलाफतकी सभा अच्छी हुई। मुझे सन्तोष हुआ। सब लोग उत्साहमें थे।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० ११४०८) की फोटो-नकलसे।



१. अहमदाबाद के एक मिल-मालिक।

२. सम्भवतः खिलाफतके प्रश्नके सम्बन्ध में गांधीजीकी प्रस्तावित इंग्लैंड यात्राके सम्बन्धर्मे।

३. १९ मई, १९२० को डेनमार्कके लिए रवाना होनेसे पहले एस्थर फैरिंग इन दिनों सिंहगढ़में थी।