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१७९. भाषण : असहयोगपर

१२ मई, १९२०

१२ मईको असहयोग आन्दोलनपर अन्तिम रूपसे विचार करनेके लिए अखिल भारतीय खिलाफत समितिकी एक फौरी बैठक हुई।' केन्द्रीय समितिने अन्तमें उप-समिति, जिसके सदस्य सर्वश्री छोटानी, गांधी, अबुल कलाम आजाद और शौकत- अली हैं, द्वारा सुझाये गये असहयोग आन्दोलनके कार्यक्रमको सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया और कार्यरूप देनेका निर्णय किया।...

महात्मा गांधीने अपने स्पष्ट और ओजस्वी भाषणमें पुनः असहयोग आन्दोलनकी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि इसकी सफलता मुसलमानोंकी दृढ़ता और साहसपर निर्भर करती है। उनके हिन्दू भाई प्रसन्नतापूर्वक उनकी सहायता करेंगे, परन्तु नेतृत्व तो उन्हें ही करना होगा। लोगोंको हर तरहसे समझा देना चाहिए कि अगर किसी उत्तेजनाके वशीभूत होकर लोगोंने संयुक्त प्रयत्नके दौरान तनिक भी हिंसा की तो वह हमारे उद्देश्यके लिए घातक सिद्ध होगी। उन्होंने सबको यह आश्वासन दिया कि इस पवित्र कार्यके लिए उनकी पत्नी तथा बच्चे प्रसन्नतासे अपने जीवन और सर्वस्वकी बलि दे देंगे।

गम्भीर विचार-विमर्श और चक्रवर्ती राजगोपालाचारीके भाषणके उपरान्त लोगोंने बड़े उत्साहपूर्वक खड़े होकर प्रस्तुत प्रस्तावके प्रति ईश्वरको अपनी दृढ़ आस्थाका साक्षी मानते हुए, उसे सर्वसम्मतिसे पास कर दिया। [ अंग्रेजीसे ]

बॉम्बे क्रॉनिकल, १४-५-१९२०


१८०. पत्र : महादेव देसाईको

आश्रम

१३ मई, १९२०

भाईश्री महादेव,

तुम्हारा ५ तारीखका पत्र मुझे आज ही मिला है। तुम्हें अब अपनी निराशासे, शून्यतासे छुटकारा पा लेना चाहिए। उत्साह स्वयमेव आ जायेगा, जोर-जबरदस्तीसे नहीं आयेगा। मुझसे दूर जानेसे यह नहीं आयेगा। मेरे पास रहते-रहते जो काम हो सकता है उसे करने से ही आयेगा।

१. यह बैठक बम्बमें मिथों मोहम्मद हाजी जान मोहम्मद छोटानीकी अध्यक्षतामें हुई थी।

२. गांधीजी द्वारा प्रस्तुत असहयोग प्रस्ताव। प्रस्ताव यहाँ नहीं दिया गया है।