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वचन पालनका श्रीगणेश

जाते हैं तो श्री एस्क्विथके आश्वासनके भी व्यर्थ होनेका खतरा है। किन्तु मैंने जो बात कही है वह श्री एस्क्विथके अनुगामी प्रधान मन्त्रीके' दो वर्ष बाद दिए गये सुविचारित भाषणके आधारपर कही है जब कि स्थिति सन् १९१४ की अपेक्षा अधिक खतरनाक हो गई थी और जब भारतीयों की सहायताकी आवश्यकता अधिक थी। उनका वचन जबतक पूरा नहीं किया जाता तबतक दुहराया जाता रहेगा। उन्होंने कहा था:

हम इसलिए भी नहीं लड़ रहे हैं कि टकसे उसकी राजधानी छीन ली जाये, या उससे एशिया माइनर और थ्रसकी वे उपजाऊ और प्रसिद्ध जमीनें ले ली जायें जिनमें प्रधानतः तुर्क जाति रहती है। हम तुर्क प्रजातिके देशमें तुर्क साम्राज्य कायम रखने और कुस्तुन्तुनियाको उसकी राजधानी बनाये रखनमें कोई आपत्ति नहीं करते।

यदि केवल इस वचनपर सचाईसे, शब्दशः अमल किया जाये तो झगड़ने की कोई बात ही नहीं रहेगी। और जहाँतक श्री एस्क्विथकी घोषणा भारतीय मुसलमानोंकी माँगके विरुद्ध समझी जा सकती है, वह श्री लॉयड जॉर्जकी इस पिछली घोषणा और अधिक सोच-समझकर की हुई घोषणासे रद हो जाती है और लॉयड जॉर्जकी घोषणा अब वापस नहीं ली जा सकती, क्योंकि वह जिस आशासे की गई थी वह पूरी की जा चुकी है; अर्थात् वीर मुसलमान सिपाही फौजमें भरती हुए एवं वे उसी जगह लड़े जिसका उक्त वचनके बावजूद अब बँटवारा किया जा रहा है। किन्तु 'सामयिक विषय' के लेखकने कहा है कि श्री लॉयड जॉर्ज अब अपने वचनका पालन आरम्भ करने- वाले हैं। मुझे आशा है कि उनका कथन ठीक होगा। किन्तु जो कुछ हुआ है, उससे किसी ऐसी आशाकी भूमिका नहीं बँधती है। क्योंकि खलीफाको उसकी राजधानी में कैद या नजरबन्द रखना वचन पूरा करनेका उपहास ही नहीं है, बल्कि जलेपर नमक छिड़कने के समान है। या तो अब तुर्क जाति जहाँ रहती है उन देशोंमें टर्कीका साम्राज्य और कुस्तुन्तुनिया में उनकी राजधानी कायम रखी जानी है या नहीं रखी जानी है। यदि रखी जानी है तो भारतीय मुसलमानोंको उसके पूरे गौरवकी अनुभूति होने दीजिए; अथवा यदि साम्राज्य भंग किया जाना है तो आडम्बरका पर्दा हटा दिया जाये और भारतको नग्न सत्यके दर्शन करने दिये जायें। इस तरह हम देख सकते हैं कि खिलाफत आन्दोलनमें सम्मिलित होनेका अर्थ है एक ब्रिटिश मन्त्रीके वचनके अक्षुण्ण रखनेके आन्दोलन में भाग लेना । निःसन्देह ऐसा आन्दोलन, असहयोगमें जितना त्याग किया जा सकता है उससे अधिक त्याग करनेके योग्य है।

[अंग्रेजी से]

यंग इंडिया, १२-५-१९२०

१. लॉपड जॉर्ज।

२. ५ जनवरी, १९१२ को दिया गया।

३. देखिए " अब क्या करेंगे?", २३-५-१९२०

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