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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

के लिए बेईमानीसे दिये गये वचनोंपर भी जोर न दूंगा, जैसा कि इंग्लैंडने गुप्त सन्धियोंके' मामले में किया है। ऐसी हालत में एक ऐसे राष्ट्रके लिए जिसे अपनी न्यायशीलतापर गर्व हो, प्रतिरोध वैध ही नहीं बल्कि अनिवार्य हो जाता है।

मेरे लिए अंग्रेज मित्र द्वारा कल्पित इस स्थितिपर कि यदि भारत स्वतन्त्र देश होता तो क्या करता, विचार करना अनावश्यक है। यह अनावश्यक है क्योंकि भार तीय मुसलमान और भारत एक ऐसे उद्देश्यके लिए लड़ रहे हैं जो सचमुच उचित है और उसीके लिए हम अंग्रेजोंकी हार्दिक सहायता मांग रहे हैं। किन्तु मैं यह कहना चाहता हूँ कि यह ऐसा उद्देश्य है जिसके लिए कोरी सहानुभूति पर्याप्त न होगी और जिसे ऐसी ठोस सहायता चाहिए जो पर्याप्त न्याय दिला सके।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १२-५-१९२०


१७८. वचन पालनका श्रीगणेश

मैंने अपने खिलाफत सम्बन्धी लेखमें मन्त्रियों द्वारा दिये गये वचनोंके सम्बन्ध में कुछ कहा था। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के 'सामयिक विषय' स्तम्भके लेखकने मेरे कथनको चुनौती देनेका प्रयत्न किया है और ऐसा करते हुए अपनी बातके समर्थन में श्री एस्त्रियके १० नवम्बर, १९१४ के, गिल्ड हॉलमें दिये गये भाषणका उल्लेख किया है। उक्त लेखको लिखते समय मुझे श्री एस्क्विथके भाषणका खयाल था। उन्होंने ऐसा भाषण दिया इसका मुझे खेद है, क्योंकि मेरी विनम्र सम्मतिमें उस भाषणसे कमसे-कम यह तो प्रकट हो ही जाता है कि वक्ताके विचार स्पष्ट नहीं हैं। क्या वे यह सोच सकते हैं कि तुर्क लोग ऑटोमन सरकारसे पृथक हैं? यदि यूरोप और एशिया में ऑटोमन राज्यके अन्तका अर्थ तुर्कोंके शासन और एक स्वतंत्र और शासक जातिके रूपमें तुर्क लोगोंका अन्त नहीं है तो और क्या है? फिर क्या ऐतिहासिक दृष्टि से यह सत्य है कि टर्कीका राज्य एक महारोग है जिससे “पृथ्वीके कुछ सुन्दरतम प्रदेश तबाह हो चुके हैं।" और उसके बाद उन्होंने जो यह कहा था कि "हमारे मनमें उनके धार्मिक विश्वासोंके खिलाफ युद्ध छेड़नेपर दूसरोंको वैसा करनेके लिए उकसाने- का खयाल कभी नहीं आया। इसका क्या अर्थ है? यदि शब्दोंका कोई अर्थ होता है तो श्री एस्क्विथने अपने भाषणमें जो शर्तें रखी हैं उनका अर्थ यही होगा कि भारतीय मुसलमानोंकी भावनाओंका सच्चे मनसे खयाल रखा जायेगा । और यदि उनके भाषणका यह अर्थ हो तो अपने कथनके समर्थन में अन्य कोई बात कहे बिना में यह दावा करूंगा कि यदि सैन रेमो सम्मेलनके प्रस्ताव कार्यान्वित किये

१. जैसी कि मित्र देशोंने रूस, इटली, और मक्का शरीफसे १९१५ में की थी।

२. देखिए “ वक्तव्यः समाचारपत्रोंको ”, १८-५-१९२०।

३. टर्कक ऑटोमन सुलतानोंकी सरकार।

४. देखिए “ वक्तव्य: समाचारपत्रोंको”, २९-४-१९२० को पाद-दिप्पणी २।