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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मामलेमें भारतीय मुसलमान इंग्लैंडके साम्राज्यवादका विरोध नहीं कर रहे हैं,बल्कि इंग्लैंडकी उदार और मानवतावादी विचारधाराका विरोध कर रहे हैं।वे इंग्लैंडके अच्छी राय रखनेवाले उस जनसमुदायका विरोध कर रहे हैं जो चाहता है कि भारत में आत्म-निर्णय के सिद्धान्तपर अमल किया जाये। मान लीजिए कि भारतीय मुसलमान भारतमें ऐसा प्रबल आन्दोलन कर सकते हैं कि उससे भारत और ब्रिटिश सम्राट्के सम्बन्ध टूट जायें, किन्तु फिर भी इससे उनकी उद्देश्य-सिद्धि तनिक भी न होगी। क्योंकि आज ब्रिटेनकी fara सम्बन्धी नीतिपर उनका बहुत प्रभाव है। भले ही टर्कीके प्रश्नके इस मामले में उनका प्रभाव इतना नहीं है कि दूसरे पक्षकी तुलनामें, जिसका बहुत प्रभाव है, वे अपना पलड़ा भारी कर सकें, फिर भी उनका असर तो पड़ा है। किन्तु ब्रिटेनसे सम्बन्ध न होता तो भारतके बाहर भारतीय मुसलमानोंका प्रभाव बिल्कुल न होता। विश्वकी राजनीतिमें तब उनका महत्त्व चीनके मुसलमानोंसे अधिक न होता। मेरे खयालसे यह सम्भव है(अमरीकाका दबाव दूसरी ओर होनेकी बात छोड़ दें तो मुझे कहना चाहिए कि निश्चित है) कि भारतीय मुसल-मानोंके प्रभावसे सुलतान कमसे-कम कुस्तुन्तुनियामें रह सकता है। किन्तु मुझे सन्देह है कि इससे उन्हें कुछ भी लाभ होगा। टर्कीका जो भाग एशिया माइ-नरमें है यदि टर्की उतना ही रह जाये तो कुस्तुन्तुनियाको राजधानी रखनेमें बहुत असुविधा होगी। मेरा खयाल है कि पुराने तुर्क साम्राज्यके इस दिखावेको कायम रखने से जितनी भावनात्मक प्रसन्नता हो सकती है उसकी अपेक्षा यह असुविधा भारी पड़ेगी। किन्तु यदि भारतीय मुसलमान यह चाहते हैं कि सुल-तानका सदर मुकाम कुस्तुन्तुनिया ही रहे तो मेरा खयाल है कि भारतके वाइस-रायने सरकारी तौरपर जो आश्वासन दे दिया है उससे हम सुलतानका संदर-मुकाम वहाँ कायम रखने के मामले में मदद देनेके लिए बँध जाते हैं और मेरा ख्याल है कि अमरीकी विरोधके बावजूद सुलतान वहाँ रहेगा भी।

यह उद्धरण एक ऐसे अंग्रेज द्वारा, जिसका ब्रिटेनमें अच्छा स्थान है, अपने भार- तीय मित्रको लिखे गये पत्रका है। अपने प्रकारका यह एक विशिष्ट पत्र है---संयत, सचाईसे लिखा गया और विषयसे सम्बद्ध। इसकी भाषा ऐसी शिष्ट है कि यद्यपि इससे आपको चुनौती दी गई फिर भी उसकी शिष्टता के कारण उसके प्रति आपका समादर बना रहता है। किन्तु अपर्याप्त या असत्य जानकारीपर आधारित इस रुखके कारण ही ब्रिटेनमें ऐसे अनेक कार्य, जिनका उद्देश्य बहुत अच्छा था, विफल हो चुके हैं। आधुनिक पत्रकारितामें जो छिछलापन, एकपक्षीयता, अयथार्थता और प्रायः असत्यता भी आ गई है उससे सच्चे आदमी, जो यह चाहते हैं कि विशुद्ध न्याय किया जाये, लगातार गुमराह होते रहते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्वार्थी दल ऐसे होते हैं जिनका

१. लॉर्ड हार्डिंग ।