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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करता, मैं यह चाहता हूँ कि वे अपने मन में से दुःखका भाव निकाल दें। इसके लिए उनको मेरा उत्तर यह है कि मेरे एक भी निर्णयपर मेरे व्यक्तित्वके राजनीतिक पक्षका प्रभाव कभी मुख्य नहीं रहा है। और यदि में राजनीति में भाग लेता हुआ जान पड़ता हूँ तो इसका कारण केवल यही है कि आज राजनीतिने साँपकी गुंजलककी तरह चारों ओरसे हमें इस प्रकार घेर रखा है कि कोई कितना भी प्रयत्न क्यों न करे, उससे निकल हो नहीं सकता। इसलिए में इस साँपसे लड़ना चाहता हूँ, जैसा में न्यूनाधिक सफलतापूर्वक जान-बूझकर १८९४ से और अनजाने, जिसका पता मुझे अभी चला है, जबसे मैंने होश सँभाला है, तबसे लड़ता रहा हूँ। चूँकि मैं नितान्त स्वार्थभावसे अपने चारों ओर गरजते हुए तूफान में शान्तिपूर्वक रहना चाहता हूँ, इसलिए में राजनीतिमें धर्मका समावेश करके अपने और अपने मित्रोंके साथ प्रयोग कर रहा हूँ। मैं समझा दूं कि धर्म से मेरा क्या मतलब है। मेरा मतलब हिन्दू धर्मसे नहीं है जिसकी मैं बेशक और सब धर्मोसे ज्यादा कीमत आँकता हूँ। मेरा मतलब उस मूल धर्मसे है जो हिन्दू धर्मसे कहीं उच्चतर है, जो मनुष्य के स्वभावतक का परिवर्तन कर देता है, जो हमें अन्तर- के सत्यसे अटूट रूपसे बाँध देता है और जो निरन्तर अधिक शुद्ध और पवित्र बनाता रहता है। वह मनुष्यकी प्रकृतिका ऐसा स्थायी तत्त्व है जो अपनी सम्पूर्ण अभिव्यक्तिके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार रहता है और उसे तबतक बिलकुल बेचैन बनाये रखता है जबतक उसे अपने स्वरूपका ज्ञान नहीं हो जाता, अपने स्रष्टाका ज्ञान नहीं हो जाता तथा स्रष्टाके और अपने बीचका सच्चा सम्बन्ध समझमें नहीं आ जाता।

उसी धार्मिक भावनाका अनुसरण करते हुए हड़ताल सूझी। मैं यही दिखाना चाहता था कि भारत में आत्म-चेतना या शिक्षितोंकी एकता कोरी शिक्षासे उत्पन्न नहीं होगी। ६ अप्रैल, १९१९ को हड़तालसे समस्त भारत में प्रकाश फैल गया, मानों किसीने जादू कर दिया हो। किन्तु शैतानने उस सरकारके, जिसे अपने अन्यायकी अनुभूति हो रही थी, मनमें भयका संचार कर दिया और लोगोंको, जो सरकारके प्रति नितान्त अविश्वासके कारण भड़कनेके लिए तैयार बैठे थे, नाराज कर दिया; जिससे १० अप्रैलका विस्फोट हुआ। यदि वह विस्फोट न होता तो भारत इतना ऊँचा उठ गया होता कि उसकी कल्पना नहीं की जा सकती। जन-साधारणने हड़ताल सच्ची धार्मिक भावनासे स्वीकार की थी। इतना ही नहीं बल्कि वह कई सीधी कार्रवाइयोंकी भूमिका बननेवाली थी।

किन्तु मेरे आलोचकने तो सीधी कार्रवाईपर खेद प्रकट किया है। क्योंकि वे कहते हैं "उससे एकता नहीं होती। " में उनके कथनका विरोध करता हूँ। इस पृथ्वीपर सीधी कार्रवाई के बिना कभी कोई काम सिद्ध ही नहीं हुआ। मैंने 'अनाक्रामक प्रतिरोध शब्दोंको इसलिए रद कर दिया कि वे अपर्याप्त थे और अनाक्रामक प्रतिरोध कमजोर- का हथियार माना जाता है। दक्षिण आफ्रिका में सीधी कार्रवाईका ही असर पड़ा था और ऐसा गहरा असर कि उससे जनरल स्मट्सकी अक्ल ठिकाने आ गई थी। वे सन् १९०६ में भारतीय आकांक्षाओंके घोर विरोधी थे। १९१४ में उन्होंने उस अपमानजनक कानूनको दक्षिण आफ्रिकाकी कानूनकी पुस्तकसे निकालकर भारतीयोंके साथ, विलम्ब-

१. ट्रान्सवालका एशियाई पंजीयन अधिनियम।