लगभग चालीस निवासी केवल भूखसे मरे बताये जाते हैं। लोग अब भी मर रहे हैं। एक बुड्ढा मेरी आँखोंके सामने ही मरा था। वह उन लोगोंमें से था जो सहायता लेने के लिए आये थे। मेरा एक साथी कार्यकर्त्ता अभी एक गाँवसे लोटा है। वह कहता है कि उसने स्वयं एक बुड्ढेको भूखसे मरते देखा था। ऐसे अनाथ बच्चे, जिनके माँ-बाप अभी हाल में ही मरे हैं, हर किसीको जहाँ-तहाँ मिल जाते हैं। आप जहाँ जायेंगे आपको ऐसे बहुतसे लोग मिलेंगे जो कंकाल-मात्र रह गये हैं। मैं आपको यह तार भेज चुका हूँ।
मैं १९ गाँवोंमें जा चुका हूँ। मेरा दौरा अभी चालू है। बीसियों आदमी भूखसे मर चुके हैं। अभी हालमें सरकारने सहायता बाँटनी शुरू की है; किन्तु यह नाकाफी है। कृपया पाँच हजार रुपये तुरन्त कुल मिलाकर ३० से ५० हजार रुपयेकी आवश्यकता होगी।
अकाल कानूनके अनुसार उन लोगोंको, जो काम करने लायक नहीं हैं, तोले अन्न प्रति व्यक्ति दिया जाना चाहिए; किन्तु केवल २६ तोले प्रति व्यक्ति ही दिया जाता है। १० अप्रैलको राहत देनेका काम शुरू किया गया था। अबतक लगभग ४,००० आदमी यह सहायता ले चुके हैं। मैंने सुना है कि यह मात्रा बढ़ाकर जल्दी ही ४० तोले कर दी जायेगी।
उड़िया लोग बहुत गरीब हैं। लेफ्टिनेन्ट गवर्नर कुछ समय पूर्व प्रभावित क्षेत्रको देखने गये थे; किन्तु ५,००० से अधिक लोगोंको यह आंशिक सहायता नहीं मिल सकी है। अकाल सम्बन्धी निर्माण कार्य अभी आरम्भ नहीं किये गये हैं। श्री ठक्करके पत्रसे सब बातें स्पष्ट हो जाती हैं। मुझे आशा है कि उड़ीसासे संकटकी जो पुकार उठी है वह सुनी जायेगी और जो लोग दे सकते हैं वे अपना हिस्सा अवश्य देंगे।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-५-१९२०
१७६. न संत, न राजनीतिज्ञ
एक दयालु मित्रने 'ईस्ट ऐंड वेस्ट' के अप्रैलके अंकसे मुझे निम्न कतरन भेजी है:
श्री गांधीको संतकी ख्याति प्राप्त है, किन्तु ऐसा लगता है कि बहुषा उनके निर्णयोंपर संत गांधीकी अपेक्षा राजनीतिज्ञ गांधीका प्रभाव ज्यादा होता है। वे हड़तालोंका बहुत उपयोग कर रहे हैं और इस बातसे इनकार नहीं किया जा सकता कि उनके निर्देशनमें हड़ताल आजके किसी भी प्रश्नके सम्बन्धमें शिक्षितों और अशिक्षितोंको संगठित करनेका एक शक्तिशाली राजनैतिक शस्त्र होती जा रही है। हड़तालके साथ उसकी हानियाँ भी हैं। उससे लोग सीधी कार्रवाई सीख रहे हैं और सीधी कार्रवाई चाहे जितनी शक्तिशाली हो तो भी उससे एकता