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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन उतनी नहीं जितनी कि दूसरी सरकारें। और एक मामूली ढंगका असहयोग करके इसे सही रास्तेपर लाया जा सकता है। आशा है अब आप यह समझ गये होंगे कि जब कोई सर्वथा असह्य अन्याय किया जा रहा हो, जैसा कि खिलाफतके मामलेमें किया जा रहा है, तो असहयोग करना उचित भी है और आवश्यक भी। मेरा खयाल है, आप यह भी समझ जायेंगे कि इस सवालपर मेरी स्थिति अध्यात्मसे उतनी प्रभावित नहीं है जितनी कि तर्कबुद्धिसे।'

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ७१८७) की फोटो-नकलसे।

१७४. पत्र : ग० वा० मावलंकरको

आश्रम

वैशाख बदी ८ [११ मई, १९२०]

भाईश्री मावलंकर,

इस पत्रके लिए मुझे क्षमा कीजिएगा। मुझसे रहा नहीं गया, इसीसे लिख रहा हूँ। कल सुना कि आप विवाह करनेकी तैयारी में हैं। मुझसे यह सहन नहीं हो सका। क्या आप एक वर्षतक शोकका पालन नहीं करेंगे? जिस स्त्रीको आपने अपनी अर्धांगिनी कहा, जिसके शरीरके साथ आपका शरीर एक हो गया, उसकी यादको आप कैसे भुला सकते हैं। क्या हम कुछ भी संयमका पालन करनेके लिए बँधे हुए नहीं है? सुना है कि आपकी माँ बहुत आग्रह करती हैं। [लेकिन] इसमें माँके आग्रहका विचार क्यों किया जाये? हम अपनी मर्यादाका उल्लंघन क्यों करें? हमें अपनी शिक्षाका विचार भी तो करना चाहिए। अब में और अधिक नहीं लिखूंगा। भगवान् आपको सुमति दे। मेरा अधिकार और मेरा कर्तव्य एक मित्रके रूप में आपको चेतावनी देना है। लेकिन कीजियेगा अपने मनकी ही। आप जो कदम उठानेवाले हैं उसमें यदि आपको त्रुटि दिखाई दे सके तो आप मुझ-जैसे लोगोंकी हिम्मत और मददसे उससे मुक्त हों।

१. यह पत्र लिखनेके अगले दिन ही, १२ मईको गांधीजी बम्बईमें अखिल भारतीय खिलाफत समितिकी बैठक में शामिल हुए और उन्होंने सविनय अवज्ञापर प्रस्ताव पेश किया, जो स्वीकार कर किया गया।

२. गणेश वासुदेव मावलंकर (१८७७-१९५६); अहमदाबादके वकील, संसदीय मामलोंके विशेषज्ञ और कांग्रेसी नेता। १९३७ में बम्बई विधान परिषद् तथा १९४६ में केन्द्रीय विधान परिषद्के अध्यक्ष निर्वाचित; मृत्युपर्यन्त लोक सभाके अध्यक्ष।

३. मावलंकरकी पुस्तक संस्मरणोंमें पत्रकी पदी तारीख दी गई है।