पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 17.pdf/४६७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४३५
तीन प्रसंग

पढ़ा गया। फिर शर्बत और मेवे भेंट किये गये तथा बादम वर-वधूने बुजुगोंके पाँव छुए। वरकी पोशाक सादी थी। शामको साढ़े छः बजे काम शुरू हुआ और साढ़े आठ बजे पूरा हो गया। इसके बाद फातिमा बहनने आश्रमके विद्यार्थियोंसे मुलाकात की। यह दृश्य करुणाजनक था। अपने साथ पढ़नेवाले विद्यार्थियों तथा अपने साथ रहने- वाले भाई-बहनोंसे बिछुड़ने का समय आया जान वह रोने लगी। उसे इस बातकी याद दिलाई गई, उसका कर्तव्य यह है कि वह आश्रमकी शिक्षाको अपने साथ ससुराल में ले जाये। वह समझ गई कि उसका कार्य अपने नये घरमें सत्य, दया, स्वदेशी, देशसेवा और सादेपनका प्रचार करना है। इस तरह विवाहका कार्य दो-ढाई घंटे में पूरा हो गया।

दूसरे दिन सबेरे मैं शहर गया। वहाँ असंख्य वर-यात्राएँ देखीं । चित्र-विचित्र पोशाक पहने बाजेवाले अपने बाजोंकी आवाजसे कानोंको बहरा किये डालते थे। वर फूलोंसे ढके हुए थे। बच्चे और बड़े असहनीय गर्मीमें गहने और मखमलके वस्त्रोंसे लदे हुए और पसीने से तर थे। इसमें मुझे न तो धर्म दिखाई दिया, न सच्चा आनन्द और न वास्तविक वैभव हो। यदि हम बाजे रखना ही चाहते हैं तो पश्चिमकी बेहूदी नकल किसलिए करें? पश्चिमकी ही नकल करनी हो तो फिर उसके वास्तविक रूपको लेना चाहिए। हम जो बैंड बजवाते हैं उसमें तनिक भी माधुर्य अथवा संगीत नहीं है, यह तो संगीतकी सामान्य जानकारी रखनेवाला व्यक्ति भी कह सकता है। घुड़चढ़ी हो तो देशकी आबोहवा के अनुकूल पोशाक क्यों न पहनें? हीरे-जवाहरात पहनने हों तो क्यों न उसमें कला अथवा विवेकका व्यवहार हो। यदि गीत गवाना ही है तो क्यों न स्त्रियों को ढंगके गीत गाना सिखायें।

मेरी शिकायत धूमधामके प्रति नहीं है। जिनके पास पैसा है, जिनके सामने अन्य कोई आदर्श नहीं है, वे धूमधाम करें। उन्हें पैसा खर्च करने का अवसर चाहिए। लेकिन मैं धूमधाम में विवेक, विचार, मर्यादा, कला और उन्नति देखना चाहता हूँ। अपने विवाहों- की पद्धतिमें परिवर्तन तो देखता हूँ, लेकिन उनमें से अधिकांश परिवर्तन बिना विचार किये गये जान पड़ते हैं। आडम्बरमें कमी होने के बजाय वृद्धि हुई है, खर्च घटनेके बजाय बढ़ा है। विवाह एक धार्मिक क्रिया भी है, यह तो भुला ही दिया गया है। अच्छे परिवार यदि विचारपूर्वक परिवर्तन करें तो अन्य उन्हें अवश्य स्वीकार कर लें, ऐसी मेरो मान्यता है। राष्ट्रीय जीवनमें यदि विकास करना है तो हमें उस जीवन के प्रत्येक अंगकी जाँच करनी होगी।

हमपर जो यह एक आरोप [लगाया जाता] है कि हम बहुत दिखावा करते हैं। उसमें कुछ सत्य है। सच्चे आनन्दके बदले हम आनन्दका ढोंग रचते हैं; और इसी तरह असली शोकके बदले शोकका आडम्बर करते हैं।

अहमदाबाद छोड़कर जब में बम्बई गया और जिस बँगले में रहा वहाँ अन्य किरायेदार भी रहते थे। उनमें से एक की मृत्यु हो गई। उस समय [ दोपहरके] बारह बजे थे। एकाएक कोलाहल मच गया। रोना-पीटना शुरू हो गया। बच्चों, स्त्रियों और पुरुषोंकी आवाजें एक साथ उठीं। यह रोना रातके दस बजेतक चला। दूसरी स्त्रियाँ